कहो कालिदास , सुनें मेरी आवाज़ में
यह कविता आप इससे पूर्व वाली पोस्ट में पढ़ भी सकते हैं...
हिन्दी कविताएं , कहानियाँ , quotes , शायरी को प्रस्तुत करने का एक मंच है। इस मंच पर नीचे दी गई सेवाओं के लिए संपर्क करें : मानसिक स्वास्थ्य के लिए परामर्श, रेकी हीलिंग, हिन्दी , Math तथा Science की कक्षाएं (Online), ज्योतिष, अंक ज्योतिष , वास्तु परामर्श
बहुत सुन्दर पाठ! लेकिन सच कहूँ तो जीवन के जिस अप्रतिम सौन्दर्य पक्ष को कालिदास ने देखा, पकड़ा और रचा-जीआ वो तो दूसरों के लिए अनुकरणीय और इर्ष्य हैं. इसका स्वाद लेना हो तो अभिज्ञान शाकुंतलम, कुमार संभव या मेघदुतम में प्रवेश करके तो देखें. संभव है कालिदास से बाहर आने की इच्छा न जगे!!!
जवाब देंहटाएंजी, विश्वमोहन जी,कालिदास का रचना संसार कि उससे बाहर आने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है। परंतु इस कविता में मैं इन लोगों की ओर इशारा करना चाहती हूँ, जो संस्कृत का स पढ़ लेने से स्वयं को कालिदास समझने लगते हैं,किसी सरकारी या गैर सरकारी बड़े ओहद पर बैठकर आम आदमी को हिकारत की नज़र से देखते हैं और और अगर उन्होंने साहित्य या कला के बारे में देख पढ़ लिया है तो फ़िर वे अपनी गर्दन को ऐसे ताने रहते हैं कि भले ही गर्दन में दर्द हो जाए उसे नीचे नहीं झुका सकते। और कोइ औरत या बच्चा उनके सामने हंस दे तो उसे ऐसे देखेंगे कि जैसे उसने वातावरण में ज़हर घोल दिया हो।
जवाब देंहटाएंवे न मुस्कुराते हैं, न हँसते हैं, और रो तो सकते ही नहीं । उनके अंदर का विद्वान उन्हें आम इंसान नहीं बनाने देता। वे किसी से बात करने से पहले उसकी शिक्षा , जाति और रूतबा दखते हैं।
ऐसे लोग आपको कंही न कंही जरूर दिखे होंगे।
इस कविता में कालिदास के सिर्फ़ नाम को सन्दर्भ के रूप में प्रयोग किया गया है कृपया इसे हमारे आदि कवि कालिदास से न जोड़ें।
सादर
बहुत ही सुन्दर पाठ ...
जवाब देंहटाएंमन की गहराइयों तक जाता हुआ ...
उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय नासवा जी।
हटाएंसादर
सही कहा।
जवाब देंहटाएं