देख कर भी जो नहीं देखा !
एक कविता.... कुछ अदेखा सा जो यूं ही गुज़र जाता है व्यस्त लम्हों के गुजरने के साथ और हम देखकर भी नहीं देख पाते , न उसका सौंदर्य , न उसकी पीड़ा, न ख़ामोशी , और न ही संवेग
सब कुछ किसी मशीन से निकलते उत्पाद की तरह होता जाता है और हमारा संवेदनशून्य होता मष्तिष्क कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाता।
सब कुछ किसी मशीन से निकलते उत्पाद की तरह होता जाता है और हमारा संवेदनशून्य होता मष्तिष्क कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाता।
वाह ... बहुत ही खूबसूरती से इस रचना को कहा है आपने ...
जवाब देंहटाएंये अंदाज़ कमाल का है ... कहते हुए जैसे आपने सच में देख लिया ...
मन की आंखों से सब कुछ देख लिया सखी।
जवाब देंहटाएंवाह!!