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स्वाद!

उनकी टपकती खुशी में
छल की बारिश ज़्यादा है,
आँखों में रौशनी से ज्यादा है नमी,
धानी चूनरों में बंधे पड़े हैं कई प्रेम,
ऊब की काई पर तैरती है ज़िंदगी की फसल
गुमनाम इश्क़ की रवायत में,
जल रही हैं उंगलियां,
जल गया है कुछ चूल्हे की आग में,
आज खाने का स्वाद लज़ीज़ है।
©Aparna Bajpai
(Image credit alamy stock photo)

टिप्पणियाँ

  1. उम्दा।दिल की गहराई तक छू गई।... आज खाने का स्वाद लज़ीज़ है...बहुत कुछ रचा और बसा है इस पंक्ति में।

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    उत्तर
    1. बहुत आभार आभा दी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
      सादर

      हटाएं
  2. रचना को मान देने के लिए बहुत बहुत आभार भाईसाहब।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, यह इश्क़ नहीं आसान - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं

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