कारोबार
तभी तुमने तबाह कर दिया था;
बूढ़े बरगद का साम्राज्य,
बूढ़े बरगद का साम्राज्य,
पीपल की जमीन को रख दिया था गिरवीं,
न जाने कितने पेड़ों को किया था धराशायी,
अपनी रौ में ख़त्म कर रहे थे,
अपने ही बच्चों की सांसें....
अपने ही बच्चों की सांसें....
लो अब काटो अस्थमा की फसलें,
कैंसर के कारोबार से माल कमाओ,
दिल और गुर्दों का करो आयात- निर्यात,
तन का क्या है......
एक उजड़ेगा तो दूसरा मिलेगा
मृत्यु शाश्वत सत्य है
उससे क्या डर....
प्रकृति रहे न रहे,
धरती बचे न बचे,
हमें क्या!
बरगद, पीपल , नीम के दिन नहीं रहे,
अब ईंटें उगाते हैं, लोहा खाते हैं
और अट्टालिकाओं के भीतर
जिन्दा दफ़न हो जाते हैं।।
#Aparna Bajpai
Image credit shutterstock
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बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंनमन आप की लेखनी को....एक सार्थक रचना
वाहः बेहतरीन
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