समलैंगिक प्रेम

बड़ा अजीब है प्रेम,
किसी को भी हो जाता है,
लड़की को लड़की से,
लड़के को लड़के से भी,
समलैंगिक प्रेम खड़ा है कटघरे में,
अपराध है सभ्य समाज में,
नथ और नाक के रिश्ते की तरह,
बड़ा गज़ब होता है,
एक होंठ पर दूसरे होंठ का बैठना,
बड़ी चतुर होती है जीभ दांतों के बीच,
कभी-कभी पांच की जगह छः उंगलियां भी
रोक नहीं पाती एशियाड में सोना मिलने से,
गोरी लड़की के काले मसूढ़े भी,
बन जाते हैं कुरूपता के मानक,
एक दांत पर दूसरे दांत का उग आना,
गाड़ देता है भाग्य के झंडे,
इस समाज में अजीब बातें  भी
हो जाती हैं स्वीकार,
फ़िर, समलैंगिक प्रेम!
क्यों रहा है बहिष्कृत?
क्यों है यह अपराध?
जिस समाज में प्रेम ही हो कटघरे में
वंहा समलैंगिकता पर बात!

हुजूर, आप की मति तो मारी नहीं गई,
विक्षिप्तता की ओर भागते दिमाग को रोकिये,
गंदी बातें कर पुरातन संस्कृति पर छिड़कते हो तेज़ाब,
ज़ुबान न जला दी जाए आपकी....
साफ़ सुथरी कविता लिखिए,
फूल ,पत्ती, चांद, धरती कितना कुछ तो है,
देखने सुनने को,
फ़िर...
अपनी मति पर कीचड़ मत पोतिये,
कुछ बातें सिर्फ़ किताबों के लिए छोड़िये,
प्रेम के अंधेरे गर्तों को मत उलीचिये,
रहने दीजिए अभिशप्त को अभिशप्त ही,
ज्यादा चूं-चपड़ में मुंह मत खोलिये।।

#AparnaBajpai

टिप्पणियाँ

  1. जिस समाज में प्रेम ही हो कटघरे में
    वंहा समलैंगिकता पर बात!

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १७ सितंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  3. हमको अपने नैतिक मापदंड दूसरे पर थोपने का कोई अधिकार नहीं है किन्तु सम-लैंगिकता को महिमा-मंडित करना भी उचित नहीं है. प्राइवेट बातें फिर प्राइवेसी में ही होनी चाहिए, उनको चौराहे पर माइक लेकर करने का क्या औचित्य है?

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  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 सितंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  5. बेहद साहसिक लेखन अपर्णा।
    आप ऐसा विषय लेकर आयी हैं जिस पर बात भी लोग नहीं करते है।

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  6. गहरी अच्छी बहुत कुछ कहती हुयी रचना है ...

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  7. प्रकृति में कोई भी जीव या कोई भी पशु समलैंगिक प्रेम में दिखाई नही देता.
    ये प्रकृति के नियम के खिलाफ है.
    दरअसल तो समलैंगिक प्रेम को प्रेम कहना ही अनुचित है.ये शारीरिक सम्बन्ध के अलावा कुछ भी जान नहीं पड़ता.
    इंसानों की ज्यादा बुद्धि इंसानों को ज्यादा भ्रष्ट कर चुकी है.वो अपनी ही तुच्छ बुद्धि से प्रकृति के नियमों में संसोधन करने तक पहुंच गया है.
    विचारणीय रचना.
    आत्मसात 

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  8. सृष्टि सृजन के समय से समलैंगिकता ही जीवन का आधारभूत सत्य है। बच्चा जब बड़ा होता है उस समय उसका पहला साक्षात्कार समलैंगिकता से ही होता है।

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