मंदिर में महिलाएं
अधजगी नींद सी
कुछ बेचैन हैं तुम्हारी आंखें,
आज काजल कुछ उदास है
थकान सी पसरी है होंठों के बीच
हंसी से दूर छिटक गई है खनक,
आओ न,
अपनी देह पर उभर आए ये बादल,
सृजन की शक्ति के सार्थक चिन्हों का स्वागत करो,
पांवों में दर्द की सिहरन को उतार दो
कुछ क्षण ,
राधे! आज मंदिर की शीतल सिला पर
सुकून की सांस लो,
सृष्टि की अनुगामिनी हो,
लाज का नहीं, गर्व का कारण है ये,
रजस्वला हो,
लोक-निर्माण की सहगामिनी!
मेरी सहचर!
स्त्री के रज से अपवित्र नही होता
मैं, मंदिर और संसार
फ़िर.. ये डर..क्यों?
कृष्ण ने राधा से कहा.
#AparnaBajpai
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लोकेश जी
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 25 अक्टूबर 2018 को प्रकाशनार्थ 1196 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
शुक्रिया रवींद्र जी, कविता को पटल पर रखने के लिए
हटाएंसादर आभार
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअभी के महौल में एक बेहतरीन रचना। जो विवादों से या इसमें उलझकर निराश-हताश हो गए हैं वे बिल्कुल कृष्ण के शरण में जाए...कृष्ण में भेदभाव नहीं है।
जवाब देंहटाएंसागर से मोती ढूंढ़ लाई हैं..इस प्रकार की है आपकी ये रचना।
ऐसी और बेहतरीन रचना लिखते रहिए। शुभकामना।
वाह!!सखी ,बहुत ही उम्दा रचना ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसटीक व सार्थक रचना 🙏
जवाब देंहटाएंबेहद सराहनीय रचना अपर्णा... राधाकृष्ण संवाद के माध्यम से एक चिरपरिचित ज्वलंत विषय पर सार्थक रचना लिखी है आपने। बहुत बधाई आपको सुंदर सृजन के लिए।
जवाब देंहटाएंज्वलन्त मुद्दे को शांत शब्दों में ऐसे परोस दिया जैसे कुछ कहा ही नहीं... बहुत सुंदर और यथार्थ चित्रित किया है सखी....👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सृजन अर्पणा जी !
जवाब देंहटाएंराधा कृष्ण के संवाद में स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा कही ये बातें शायद भविष्य में शास्त्र सम्मत मानी जायें और लोगों की नजरिया बदल भी जाय......
जैसे आदि काल से विद्वान मनीषियों ने व्रत उपवास या अन्य जरूरी विधि विधानों को धर्म और शास्त्र से जोड़कर परम्परा बना दिया जो सभी के हित में थे...
लाजवाब सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
राधा कृष्ण के संवाद के जरिए बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंशुभकामना एक बेहत
बधाई एक बेहतरीन पेशकश के लिए।
हटाएंकमाल की रचना---गज़ब का अहसास---एक सुखद सत्य---जिसे स्वीकार करने से न जाने बहुत से लोग क्यूँ डरते हैं---
जवाब देंहटाएंसृष्टि की अनुगामिनी हो,
लाज का नहीं, गर्व का कारण है ये,
रजस्वला हो,
लोक-निर्माण की सहगामिनी!
मेरी सहचर!
स्त्री के रज से अपवित्र नही होता
मैं, मंदिर और संसार
फ़िर.. ये डर..क्यों?
कृष्ण ने राधा से कहा.
आप ने इस विषय पर रचना लिख कर बहुत ही दलेरी का परिचय भी दिया है--उम्मीद करनी चाहिए कि सत्य को अस्वीकार करने वालों का ह्रदय परिवर्तन होगा---
प्रिय अपर्णा -- रजस्वला होने की स्थिति को सदा समाज में एक घृणित दृष्टिकोण से देखा गया है पर किसी ने मंदिर में बैठे ईश्वर से प्रश्न किया होता तो वह भी सृष्टि की कारक इस स्थिति को कभी नकारते नहीं और अपनी माता या सहगामिनी का यूँ ही स्वागत करते -- खुले मन से -- खुली बाँहों से ---जैसे कृष्णा ने राधा का किया -- कितने उर्जाभरे मधुर शब्द हैं ---
जवाब देंहटाएंराधे! आज मंदिर की शीतल सिला पर
सुकून की सांस लो,
सृष्टि की अनुगामिनी हो,
लाज का नहीं, गर्व का कारण है ये,
रजस्वला हो,
लोक-निर्माण की सहगामिनी!
मेरी सहचर!
स्त्री के रज से अपवित्र नही होता
मैं, मंदिर और संसार
फ़िर.. ये डर..क्यों?!!!!
बहुत बहुत सराहनीय है ये रचना शबरीमाला के मंदिर के प्रबंधकों को कड़ा जवाब है | सस्नेह --
प्रिय रेणु दी, आपकी सराहना मन को छू जाती है और लगता है जैसे अपने किसी खास ने आशीर्वचनों की बौछार कर दी हो. बहुत बहुत आभार आपका। अपना प्यार यूं ही बनाये रखें...
हटाएंसादर
Beautifully penned down!
जवाब देंहटाएंThanks Neha and Wellcome on my blog
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