अज़नबी
मैंने उसको देखा
उसने मुझे,
आंखों ने दर्द की भाषा समझी,
खुल गईं कुछ मुट्ठियाँ जेब के भीतर,
खुले दिल,
हमने अपनी अपनी गठरियाँ
सरका दीं एक दूसरे के सिरों पर,
होता रहा वार्तालाप मूक
अजनबी थे दोनो ही,
मुक्ति की समाधि में उतरते हुए
दोनो की मुट्ठियाँ गुंथी थी..
©Aparna Bajpai
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/08/2019 की बुलेटिन, "प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 17 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा दी, सादर
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