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ग्रहों और नक्षत्रों की चाल बदलती है, बदल जाता है अच्छा वक्त बुरे में, बुरा अच्छे में, समय की सुई को कौन रोक पाया है, जैसे रोका नहीं जा सकता वक्त, रोकी नहीं जा सकती मन की गति सवेरा शाम में बदला नहीं जा सकता वापस नहीं लिए जा सकते शब्द, ठहरो न! देखो मन का दर्पण तुम कितना बदले हो ।।
एक कबूतरी ने दूसरी कबूतरी से कहा , "तुम्हारा कबूतर मेरे आसमान में आ जाता है, उसे रोक लो नहीं तो टांगे तोड़ दूंगी (पंख नोच दूंगी)". दूसरी ने कहा बताना कब टांगे तोड़ने का प्लान है, मैं भी आजाऊंगी। दूसरी आश्चर्य में पड़ गई, ऐसा क्यों! दूसरी ने कहा, "वह किसी और का है बस सबके आंगन में ताकाझांकी करता है".. कबूतर किसी और के आंगन में झांक रहा है . यह कबूतरों की कौम बड़ी..…है यार।
"जैसे रात ने सुबह में खोज लिया अंत।" बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंसादर