कंधे
ईश्वर उनके दरवाजे पर खड़ा था
पीठ पर था हजारों मन्नतों का बोझ
पैर जकड़े थे मालाओं की डोरियों में,
आंख भर देखने के बाद ईश्वर ने ली संतोष की सांस,
माड़ का कटोरा लिए हुए बच्चे
नाच रहे थे मरणासन्न मां के आसपास,
ईश्वर का काम ख़त्म हो चुका था...
अब खुशियों का बोझ बच्चों के कंधों पर था..
©️Aparna Bajpai
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जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंमरणासन्न माँ ने अपनी राह जो देख ली अब बोझ बच्चों के कंधे पर ही रहेगा....ईश्वर जो फिर गया उनका ...मांड का कटोरा देकर...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन।