दृश्य
1.
दर्शकों ने इस बार तालियां नहीं बजाईं,
न ही उतरे वो संवेदना के समुद्र में,
दर्शक मंच पर थे,
दृश्य में उतरे हुए,
बलात्कारी के साथ...
वासना का कथानक;
पूरे थियेटर पर तारी था।
2.
खिड़की के बाहर
लटकी हैं दो आंखें,
उमग कर करती हैं सलाम
हवा के ताजे झोंके को,
आंखें टिकी हैं ज़मीन पर
नाचते हुए पत्ते
मृत्यु के जश्न में तल्लीन हैं।
3.
चिता की आग पर
उबल रहा पानी
मृत्यु का आखिरी घूंट है,
चाय की चुस्की
विदा का अनन्य उपहार,
जीवन और मृत्यु,
चाय की परिधि में घूमते दो
चक्र हैं।
4. पलाश के फूल
और सुगनी के जूड़े का क्लिप
आदिवासी सभ्यता का स्थाई सौंदर्य हैं,
जंगल दहकता है,
उगलता है आग,
हरियाणा के बाज़ार में;
जूड़े का क्लिप;
किसी की पैंट का
स्थाई बटन बनता है।।
©️Aparna Bajpai
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार..
हटाएंअद्भुत।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!
हटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत एवं उत्कृष्ट...
लाजवाब सृजन
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ सितंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार स्वेता जी रचनाओं को मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंसादर
"दर्शक .. बलात्कारी के साथ..."
जवाब देंहटाएं"नाचते हुए पत्ते / मृत्यु के जश्न में तल्लीन हैं।"
"मृत्यु का आखिरी घूंट है,"
"हरियाणा के बाज़ार में;/जूड़े का क्लिप;/किसी की पैंट का/स्थाई बटन बनता है।।" - अप्रतिम बिम्ब से सिक्त रचनाएँ/ विचार ...
बहुत आभार सुबोध जी
हटाएंसादर