अस्तित्व

 अच्छा हुआ कि

आकाश हरा नहीं हुआ,

धरती को लेने दी उसकी मन चाही रंगत,

पेड़ों ने बर्फ के रंग न चुराए

और बर्फ रही हमेशा अपने ही रंग में,

अगर मिल जाता रंग धरती और आकाश का 

तो क्या;

धरती 'धरती' रहती!

और आकाश बना रह पाता आकाश?

©️ अपर्णा बाजपेई

चित्र  कवियत्री 'नताशा' की फेसबुक वाल से साभार

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (११-०९-२०२०) को 'प्रेम ' (चर्चा अंक-३२३८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!!!!
    सबका अपना अपना अस्तित्व है
    बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  3. आप अपनी अलंकार युक्त सुंदर सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जायेंगे। इतनी सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए साधुवाद। आपने अपने काव्य में भी साहित्यिक सौन्दर्य के साथ साथ आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। अपनी लेखन पर नियमित कार्य करते रहें , एक दिन अवश्य पहचान मिलेगा ।

    जवाब देंहटाएं

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