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सोचनीय।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Sir!
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-20) को "बदलो जीवन-ढंग"'(चर्चा अंक- 3888) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 17 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरचना लिंक करने के लिए सादर आभार रवीन्द्र जी
हटाएंगजब।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंसादर
कम शब्दों में कई खतरे उजागर हो गये, सुन्दर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता !!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय शरद जी,
हटाएंसादर आभार
वाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबेहद खतरनाक !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंसादर
स्वतंत्र मन! औरत का तन होना ही खतरनाक है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंसादर
सत्य को उजागर करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंसादर
निशब्द ...बहुत गहरी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंसादर