प्रेम उन हवाओं से छनता रहा,
जो तुम्हारे शहर से लौटी थीं,
तुम्हारे स्पर्श से महका रजनीगंधा
आज मेरे इत्र में अा मिला,
सुबह पैरों के आसपास नाचती हुई तितली ने,
तुम्हारी नज़रों का पैग़ाम मुझको सौंपा,
मै बेसुध हूं !
फोन पर तुम्हारी खिलखिलाहट की घंटियां
मेरे पांवों में थिरकन भर रही हैं,
आज उंगलियों ने मेरे हस्ताक्षर में तुम्हारा नाम लिख दिया..
नदी के पाट पर बैठा रहा हूं;
तुममें,खुद को खोजता
परछाइयों ने जुदा होने से इन्कार कर दिया है..
#प्रेमकविता
#aparnabajpai
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार sir
हटाएंसुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी
हटाएंसादर
वाह
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार
हटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंसादर