कामकाजी औरतें

 ख़ुदा उन औरतों के कदमों में बैठ गया,
 लौटते ही जिन्होंने परोसा था खाना बूढ़े मां- बाप को,
उंगलियों से संवार दिए थे नन्हे पिल्ले के बाल,
मुस्कुराकर लौटाया था,
पड़ोसी के ख़ाली डिब्बे में मूंग दाल का हलवा,

समय से होड़ लेती औरतें,
कामकाजी होने के कारण बदनाम थीं,
बदनाम औरतों ने खिदमत की परिवार की, 
वे कमी को भी बरकत बता , 
पोछती रहीं पतियों की पेशानी से पसीना,

वे भूल गई थीं अपनी अलको को समेटना धीरे से,
अपने हाथों पर क्रीम की मसाज करना ,
पैरों को डाल गुनगुने पानी में धो देना मन का गुबार,
काम का बोझ उनकी पलकों पर टंगा रहा,
बॉस की झिड़की नाचती रही पुतलियों के आस - पास
आंखों में काजल डाल वे खड़ी रहीं गृहस्थी की सरहद पर
आमदनी में बढ़ाने को शून्यों की संख्या;
वे तोड़ती रहीं अपनी कमजोरियों की सीमारेखा,

वे औरतें काम में तल्लीन रहीं
और दुनिया उनकी कमियां गिनने में।
जब जब रखतीं वे पांव जमीन पर,
ख़ुदा उनके साथ चलता,
उनकी आंखों में आत्मविश्वास की चमक,
ख़ुदा का दिया हुआ नूर था...
और उनकी कमियों को गिनने में डूबी दुनिया
उसी नूर से रौशन थी।।



©️ अपर्णा बाजपेई



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तुम बस थोड़ा जोर से हंसना

आहिस्ता -आहिस्ता

हम सफेदपोश!