आवाज़
आवाज़ के सिरे पर तुम्हारे होठ कांपे थे
कांप गई थी हवा कंठ में,
शब्दों ने बोसा दिया था मेरे माथे पर,
आंखों ने अंजुरी भर जल छींट दिया था मरुस्थल में,
तुमने कहा था, जो तुम्हें नहीं कहना था!
हृदय की धड़कन ने कहा था सच;
जानती हो न!
हवा के तार ने आकाशगंगा में फेंक दिए थे कुछ फूल,
तुमने ताका था जब चांद आधी रात के बाद,
मैं चुपचाप निहार रहा था तुम्हारा चेहरा;
चांद की शक्ल में,
देश दूसरा है तो क्या हुआ
हवाओं ने चुराकर खुशबू तुम्हारे बालों से
मेरी हंथेलियों पर रख दी है,
कहो न आज! कितना खूबसूरत है जीवन
तुम्हारी आवाज़ मेरे जीवन का आख़िरी सच है।।
कांप गई थी हवा कंठ में,
शब्दों ने बोसा दिया था मेरे माथे पर,
आंखों ने अंजुरी भर जल छींट दिया था मरुस्थल में,
तुमने कहा था, जो तुम्हें नहीं कहना था!
हृदय की धड़कन ने कहा था सच;
जानती हो न!
हवा के तार ने आकाशगंगा में फेंक दिए थे कुछ फूल,
तुमने ताका था जब चांद आधी रात के बाद,
मैं चुपचाप निहार रहा था तुम्हारा चेहरा;
चांद की शक्ल में,
देश दूसरा है तो क्या हुआ
हवाओं ने चुराकर खुशबू तुम्हारे बालों से
मेरी हंथेलियों पर रख दी है,
कहो न आज! कितना खूबसूरत है जीवन
तुम्हारी आवाज़ मेरे जीवन का आख़िरी सच है।।
©️अपर्णा बाजपेई
Heart touching lines
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1980...सुरमई-सी तैरती मिहिकाएँ...) पर गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी, रचना को मंचनपर स्थान देने के लिए सादर आभार
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अनुराधा जी
हटाएंसादर
सुंदर अभिव्यक्ति..।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है जिज्ञासा जी,सादर आभार
हटाएंलाज़वाब सृजन अपर्णा।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहती है।
आप का हृदय तल से आभार स्वेता जी
हटाएंसादर
सुंदर स्नेह से सिंचित श्रृंगार सृजन ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार दी
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