आना जाना

 चांदी के तार उतर आए हों बालों में भले ही,
झुर्रियां थाम रही हों हांथ
चाहे जितना,
दुखते हों पोर तन के भले ही अक्सर,
मेरे दोस्त, ज़रा ठहरो भीतर:
देखो कि अब भी
उछलता है दिल नया कुछ करने को,
सवार हो घोड़े पर सारा जहां टटोलने को,
चाहते बढ़ रही हों जैसे प्यार नया,
बसंत के मौसम में खिली हो जैसे सरसों,
टूटना मत मेरे दोस्त उम्र के सामने कभी,
सिर्फ गिनती हैं वर्ष और उनकी गांठे,
फिराओ हांथ अपनी रूह को दो ताकत,
ये समय है ये भी गुज़र जायेगा ..




©️Aparna Bajpai

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