बच्चे की बात (कविता)

आज मैंने आसमान में टंगी हुई इक रोटी देखी
चम-चम, चम-चम चमक रही थी,
रोटी पाना, क्या आसमान पाने जैसा है?
खाली मूली चांद देखकर क्या होता है
पेट नही भरता अपना है....
नींद हिलोरें देकर भी जाने कहाँ सरक गई है,
जब जब जलती बत्ती कोई दूर रोड पर,
मइया की धोती में थोड़ा और पसरते,
हो सकता बूंद एक दो बची हुई हों...
गोल-गोल रोटी के ऊपर रखी मलाई,
मिल जाएगी जिस दिन...
समझूंगा तुम सच में हो!
मंदिर भीतर मंद-मंद जो मुस्काते हो
हाँथ में पकड़े हुए हो जो बंशी तुम!
इधर उछालो तो जानूं
कि सच्चे हो तुम!

Picture credit google

अपर्णा बाजपेयी



टिप्पणियाँ

  1. सच है जब रोटी देखें तो आश्वस्त हों ������

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  2. मार्मिक से भरी बालमन की अभिव्यक्ति प्रिय अपर्णा | भूखे भजन ना होय गोपाला --
    आखिर एक बालक को चाँद से क्या काम और कान्हा की बंशी से कैसा मोह | उसके लिए रोटी चाँद से बढ़कर है और भूखे पेट बंशी का कोई मोल नहीं |

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