एक अज़नबी

 
तुमने मेरी आँखों मे देर तक झाँका,
चुपके से देखते, और छिप जाते शर्म की ओट,
मां की गोद में दुबके हुए तुम!
मेरे चेहरे की लकीरें पढ़ने में व्यस्त थे,
और मैं; तुम्हारी आंखों के उस भाव को समझने में,
तुमने मेरे बैग को छुआ, मानो जांचना हो मेरा गुस्सा,
मेरी ओढ़नी पर अपने होंठों की छाप लगाई,
शब्द हमारे बीच अज़नबी रहे, और भाषा अनावश्यक
फ़िर मैं उठी, विदा में तुम्हारी ओर देखा,
अचानक तुमने थाम ली मेरी उंगली....
तुम्हारी आँखों में भर आया जल, 
और मैं नेह के सागर में डूब गई...
अब तुम मेरी डायरी के पन्ने पर बैठे हो,
जैसे बैठ गया हो समय थोड़ी देर सुस्ताने को।

अपर्णा बाजपेयी

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. रचना को मंच पर शेयर करने के लिए सादर आभार दी

      हटाएं
  2. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना,सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-03-2021 को चर्चा – 4,002 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

    जवाब देंहटाएं
  4. शुक्रिया दिलबाग जी,
    चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए सादर आभार

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  5. एक दूसरे के मन के भाव पढ़ते हुए । बहुत सुंदर

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  6. तुमने मेरे बैग को छुआ, मानो जांचना हो मेरा गुस्सा,
    मेरी ओढ़नी पर अपने होंठों की छाप लगाई,
    शब्द हमारे बीच अज़नबी रहे, और भाषा अनावश्यक
    बालमन के भावों को बड़ी सहजता से उकेरा है...
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन।

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    उत्तर
    1. आदरणीय सुधा जी
      टिप्पणी के लिए सादर आभार

      हटाएं
  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2071...मिले जो नेह की गिनती, दहाई पर अटक जाए। ) पर गुरुवार 18 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. आदरणीय रवींद्र जी ,रचना को मंच प्रदान करने के लिए सादर आभार

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  8. बहुत ही सुंदर वात्सल्य में पगी रचना।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं
  10. बच्चों के सहज व्यवहार पर हृदय स्पर्शी सृजन, बहुत सुंदर वात्सल्य से ओतप्रोत।

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  11. आपका हृदयतल से आभार दी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुंदर अहसासों से बुनी हुई कविता.

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह!वात्सल्य की मनोरम झांकी प्रिय अपर्णा |
    अब तुम मेरी डायरी के पन्ने पर बैठे हो,
    जैसे बैठ गया हो समय थोड़ी देर सुस्ताने को।
    मानो समय आँखों के आगे से गुजर रहा हो |

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