आदिवासी गलियों में घूमते हुए

"अंतरराष्ट्रीय जनजातीय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं"

आज प्रस्तुत है एक कविता जिसमें झारखंड के आदिवासी गलियों में घूमते हुए, उनसे मिलते हुए जो महसूस हुआ उसे स्वर देने की कोशिश की है... यह वीडियो देखें, और अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत कराएं.. सादर




टिप्पणियाँ

  1. प्रिय अपर्णा आदिवासियों के संघर्ष से दुनिय वाकिफ है प्रगति की तीव्रता और भयावहता के मध्य भी वे अपनी मूल संस्कृति को थामे बैठे हुए हैं। उनके लिए आपकी संवेदनाओं और सहयोग के बारे में जानकर अच्छा लगा। कविता उनके संघर्ष के साथ उनकी अदम्य साहस और जीवटता की परिचायक है। गर्व है तुम पर। खूब आभार और अभिनंदन। मेरा प्यार।

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    1. प्रिय रेनू दी, आपके शब्द आपके स्नेह का महकता हुआ गुलदस्ता हैं,आपकी प्रतिक्रिया दिल को अंदर तक छू जाती है और हमें और बेहतर करने का हौंसला देती है। आपके शब्द हमेशा हमारा उत्साह वर्धन करते हैं। आपका स्नेहाशीष हमेशा मिलता रहे और हम आपके मार्गदर्शन के आकांक्षी हैं। सादर

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  2. विश्व जनजातीय दिवस पर समस्त आदिवासी समाज के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई प्रेषित करती हूं 🙏🙏🌷🌷

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  3. प्रिय अपर्णा , एक बात लिखना भूल गयी | आदिवासी समाज को मैंने कभी नहीं देखा पर उनकी रोमांचक कहानियाँ खूब पढ़ी - सुनी हैं | मेरे लिए उनकी सदभावनाएँ सदैव हैं |प्रकृति उनके सानिध्य में खुलकर साँस लेती है | वे वैदिक संस्कृति के अनमोल संवाहक हैं |

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  4. प्रिय रेनू दी, वे हमारे जैसे ही हैं। उनका जीवन प्रकृति के आसपास ही गुजरता है। उनके सारे पर्व प्रकृति से जुड़े हुए हैं। कभी झारखंड आइये तो हम आदिवासी समुदायों के बीच जाकर नए अनुभव समेटेंगे। आप सादर आमंत्रित हैं दी।
    सादर

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