उंगलियों का तिलिस्म
उतरन की तरह उतार कर रख दिया प्रेम,
कमरे के भीतर उतार कर रख दी आत्मा,
वह अभी भी सांकल पर रखी उँगलियों का तिलिस्म खोजती है,
वे जो खोल देती हैं दरवाजे से दुनिया...
सोलह श्रृंगारों का साथ,
सुहागन की पहचान,
वंश की बेल को जिंदा रखने का एहसास
फिर भी उंगलियों का जादू जिस्म की सांकल नहीं खोल पाता,
रूह और प्रेम के बिना भी बीत जाती है ज़िन्दगी,
कट जाती है उमर
बढ़ता है वंश भी
बस
एक इंसान मात्र शरीर रह जाता है...
#अपर्णा
शानदार कविता!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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