पेंटिंग का राज़ ( धारावाहिक कहानी ) भाग 1

 वे दोनों अलग अलग शहरों में थे . जहाँ ज़िंदगी इतनी बेतरतीबी से बीत रही थी कि उम्हें अपनी सांसों का भी इल्म न था . समय हवा के हिंडोले पर सवार था और ज़िंदगी रसहीन झोंके ले रही थी. मधूलिका उम्र के साथ और निखर रही थी . घर के लोग चाहते थे की जल्द से जल्द वह अपना घर बसा ले और माता पिता को अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति दे . लेकिन सवाल सिर्फ शादी का नहीं था वे चाहते थे की मधूलिका खुश भी रहे . लेकिन किसी अनजान आदमी के साथ सात फेरे ले लेने से खुशियों की गारंटी तो नहीं मिल जाती . वह जब भी आँखें बंद करती तो उस सख्स का चेहरा उसकी नज़रों के सामने आ जाता जिसने कभी शादी का वायदा नहीं किया था. न ही कोई कस्में वादे हुए थे उनके बीच. वे तो सर्फ साथ-साथ रहना कहते थे ताकि अपनी खुशियाँ – अपने गम बाँट सकें. साहिल मधुलिका से बहुत दूर था सात समंदर पार. दोनों के बीच कोइ राब्ता नहीं था सिर्फ पिछली यादों के सिवा.

एक दिन सुबह के यही कोइ तीन बजे होंगे कि  साहिल के मोबाइल पर एक मैसेज आया. क्या तुम अब भी न्यूयार्क में हो ? न पूछने वाले का नाम परिचय . सुबह जब साहिल ने मैसेज देखा तो न जाने क्यूं सबसे पहले उसके दिमाग में मधुलिका का ही ख़याल आया . कहीं मधुलिका तलाशने की कोशिश तो नहीं कर रही. साहिल ने कोइ जवाब नहीं दिया . देता भी कैसे जिस रास्ते वह आगे बढ़ चुका था वहां से लौट नहीं सकता था. कभी-कभी कुछ कदम लौटाए नहीं जाते भले ही अपने लोग कहीं  पीछे छूट गए हों .

24 मार्च की वह रात वह कैसे भूल सकता है जब उसने अपने ही कलीग से सिर्फ इस लिए शादी कर ली थी कि वह कुछ कमजोर लम्हों को उसने अपने मोबाईल में कैप्चर कर लिया था और साहिल के पास किसी को बताने के लिए कोइ जवाब नहीं था. मजबूरी की शादी उसके सर का बोझ बन गयी थी और वह उस बोझ को पूरी सिद्दत से निभा रहा था. शुरुआत में आरोही के साथ कुछ अनबन रहने के बाद धीरे धीरे सब कुछ पटरी पर आ गया था. एक शादीशुदा ,काम का मारा हुआ आदमी अपने जीवन के पथ पर यूं बढ़ रहा था मानो सैकड़ों किलो का बोझ लेकर किसी रस्ते पर जा रहा हो . सपने , इच्छाएं , ख्वाहिशें जैसे किसी दूसरी दुनिया के शब्द हो गए थे . अब उसके लिए कमाना और खाना ही ज़िंदगी की असलियत रह गयी थी.

उधर से कोइ जवाब न मिलने के बाद मधूलिका ने फिर कोशिश नहीं की. उम्र और समय के साथ मधुलिका करियर की ऊँचाइयाँ तय कर रही थी. शादी न करने की इच्छा थी और न ही वक्त. अब तो कोइ बोलने वाला भी नहीं रह गया था. 35 साल की मधुलिका समाज के ताने बाने से अलग आराम से अपनी ज़िंदगी गुजार रही थी. कभी कभी कोइ दोस्त या कलीग अगर पूछ भी देता कि किस राजकुमार का इन्तजार कर रही हो? तो वह जोर का ठहाका लगाती और कहती,” राजकुमार लौटने का रास्ता भूल गया और मुझे आज़ाद हवाओं के साथ मज़े करने का तोहफा दे गया है”.

मुम्बई के एक आलीशान होटल में लाउंज में बैठी हुई मधुलिका इकनोमिक टाइम्स के पन्ने पलट रही थी की एक नौजवान उससे पूछता हुआ उसके नज़दीक आकर बैठ गया. मधुलिका का ध्यान उसकी तरफ नहीं था लेकिन जब काफ़ी देर तक वह उन नज़रों की ताब को बर्दास्त न कर पाई तो वह गुस्से में उससे मुखातिब हुई और बोली ,” क्या कुछ और नहीं है आसपास जिसे आप घूर सकें. बहुत देर  से देख रही हूँ कि आप लगातार मुझे घूरे जा रहे हैं. सिक्योरिटी को बुलाऊँ क्या?” अरे मैडम ऐसी बात नहीं है. वो क्या है कि आपकी पेंटिंग मेरे घर की उस दीवार पर अब भी टंगी है जो पाँच साल पहले मैंने न्यूयार्क में खरीदा था. पेंटिंग हूबहू आप के जैसी है. किसी साहिल रस्तोगी नाम के पेंटर के उस पर सिग्नेचर हैं. “ 

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अब चौकने की बारी मधूलिका की थी. क्या साहिल अब भी पेंटिंग बनाता है.... कई सवाल उसकी जुबान तक आकर रुक गए. मिस्टर आपका परिचय जान सकती हूँ. जी मै अदनान हुसैन, लाहौर से. कई देशो में में घूमता रहता हूँ. घरों को बनाता हूँ और सजाता हूँ. कभी कुछ खास दिख जाता है तो यद् रह जाता है . एक फ़िल्मी सितारे के नए घर को सजाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है जिसके लिए यहाँ आया हूँ. वैसे इण्डिया मेरा दूसरा घर है. कई रिश्तेदार यहाँ रहते हैं. आज जैसे ही आपको देखा तो वह पेंटिंग याद आ गयी जिसे उसके मालिक ने घर बेचते समय तोहफे के तौर पर दे दी थी और इसरार किया था कि उस पेंटिंग को उस घर से दूर न किया जाय.. न जाने क्या था कि उसकी आँखों में कुछ नमी सी तैर गयी. अब वहां पर बैठे रह पाना उसके लिए मुश्किल हो गया था.  

 

आगे पढ़ें अगले अंक में ......

क्या साहिल लौट आएगा ?

मधूलिका की पेंटिंग और अदनान हुसैन के घर का क्या राज़ है ?  


टिप्पणियाँ

  1. पहली ही कड़ी ने ऐसी उत्सुकता जगा दी है कि आगामी कड़ी की प्रतीक्षा ही एक परीक्षा बन गई है।

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    1. जी, शुक्रिया, अगली कड़ी के लिए कल तक प्रतीक्षा करें ।
      सादर

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