ज़माने के साथ(लघु कथा)
अम्मा को आजकल गठिया का दर्द बहुत परेशान करता है। नींद भी आधी रात से ही धोखा दे जाती है। बहुत देर तक करवटें बदलती हुई अम्मा को जब नींद नहीं आई तो वे जल्दी ही उठ गई और सोचा क्यों न घर का कुछ काम कर लिया जाए।
आजकल काव्या को बहुत काम रहता है। ऑनलाइन काम करती है और घर का काम ऊपर से छोटा सा बच्चा। क्या-क्या काम करेगी वह। उन्होंने घर में झाड़ू लगाई और मन ही मन बहू की सुरुचिपूर्ण साज सज्जा की तारीफ़ की। उन्होंने हर सामान को यूँ छुआ मानो उसे प्यार कर रही हों और उससे अपना नाता जोड़ रही हों।
अम्मा ने झाड़ू लगाई फ़िर सोचा क्यों न पोछा भी लगा लिया जाए । घर के एक कोने में नए जमाने का बढ़िया सा चक्का लगा हुआ एक पोछा स्टैंड रखा हुआ था। अम्मा ने बड़ी आसानी से पोछा लगाया और पोछा लगाते लगाते मन ही मन बहू को तारीफ की कि एक वह जमाना था जब उन्हें बैठकर पूरे घर में पोछा लगाना पड़ता था और अपने घुटनों और कमर के दर्द से असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता था। कुछ भी नया करना चाहती तो सासू मां कहतीं," हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था। नए चोंचले हमारे घर में नहीं होते"। वे मन मसोस कर रह जातीं। उन्होंने तभी गाँठ बाँध ली थी कि अपनी बहू के आगे कभी पुराने जमाने की चर्चा नहीँ करेंगी।
अब अम्मा को चाय पीने का मन किया तो केतली में बस दो मिनट में चाय बन गई। बाथरुम में गईं तो कपड़े धोने का झंझट भी नहीँ। वॉशिंग मशीन में कपड़े डाले और बस, कुछ ही देर में धुल कर निकल गए । Image credit pexel
रोजमर्रा के काम इतनी असानी से होता देख और बहू से मां वाला अपनापन पाकर अम्मा गांव नहीं जाना चाहती। शाम को बेटे ने जब गांव जाने की बात कही; अम्मा ने बहू का हांथ पकड़ लिया। बहू ने भी अपना दूसरा हांथ उनके हांथ पर रखकर बता दिया कि वह उनके साथ है। Image credit gettyimages
अब अम्मा एक पेंटिंग क्लास चलाती हैं और उनके क्लास में पेंट किए गए समान देश-विदेश के अनेकों घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
बहुत सुंदर 💐💐
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंकहानी के स्थान पर इसे रेखाचित्र कहना उपयुक्त होगा। बहुत अच्छी रचना है यह - चित्त को आह्लादित कर देने वाली।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, आपकी टिप्पणी से मनोबल बढ़ता है
हटाएंसादर आभार
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शुक्रिया दी
हटाएंसादर
सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विभा दीदी
हटाएंसादर
दिलबाग जी, रचना को मंच पर स्थान देने के लिए सादर आभार
जवाब देंहटाएंअम्मा चली ज़माने के साथ
जवाब देंहटाएंबहू ने भी लिया हाथों हाथ ।
बहुत बढ़िया लघु कथा ।।
धन्यवाद दी, सादर
हटाएंआपके ब्लॉग को फॉलो कैसे किया जाय ?
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है। सबसे ऊपर साइड में menu की तीन छोटी लाइने हैं उनपर क्लिक करेंगे तो follower की सूची दिखेगी। वहाँ पर follow करें
हटाएंबढ़िया एवं सुखद !
जवाब देंहटाएंजी, शुक्रिया
हटाएंप्रेरक घटना क्रम , ऐसा नियोजित व्यवहार हो तो सब कुछ व्यवस्थित हो जाए जीवन में।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
प्रिय दी, सब कुछ हृदयतल से आभार, सादर
हटाएंबहुत बढ़िया लघु कथा :)
जवाब देंहटाएंप्रिय अपर्णा, यदि सास बहू की आत्मीयता इस कदर प्रगाढ हो तो राम राज्य की राह दूर नहीं।जरुरी है सास आधुनिका कामकाजी बहु के जीवन की उलझनों को समझ सहयोग करे तो बहु भी सासू माँ को सहजता से अपनेपन का एहसास करवाये।एक सकारात्मक सोच को बढावा देती रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंनेह तो होता ही है दी, हम कभी-कभी उसे देख नहीं पाते। सादर
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