आमदनी (लघु कथा)

 ट्रैफिक सिग्नल पर गुब्बारे बेचने वाली रूमा आज कुछ उदास थी।  उसके और दोस्त अभी तक नहीँ आए थे।  गुब्बारे भी नहीं बिक रहे थे। रूमा को जोर की भूख लगी थी। उसकी अम्मी दूसरे शहर गई हैं  कल लौटेगी।  तब तक उसे अकेले ही रहना है। यही सब सोचते हुए रूमा चौराहे के किनारे लगे पेड़ के पास बैठ गई और उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी सड़क के उस पार बैठा हुआ कुछ बेच रहा है । रूमा सड़क पार करने का इंतजार करने लगी।

 जैसे ही ट्रैफिक की गाड़ियां कम हुई, रूमा ने सड़क पार की और दूर बैठे उस बूढ़े आदमी के पास पहुंची।  बूढ़े आदमी के सामने कुछ  ताजे जामुन रखे हुए थे। वह उन्हें पत्तल की टोकरियों में बेच रहा था ₹5 का एक, ₹5 का एक ।
रोमा कुछ देर तक उन  जामुन को देखती रही।  पेट की  भूख  और  उन  जामुन  की  चमक  उसे  लालच दे  रहे  थे। रूमा ने  झिझकते  हुए  कहा, "क्या आप मुझे थोड़े से जामुन खिलाएंगे"?  बूढ़े आदमी ने रूमा की तरफ देखा। 

फटी पुरानी फ्रॉक,  पैरों में चप्पल नहीं, बाल बिखरे हुए लेकिन आंखों में गजब की चमक। उसके पास पैसे नहीं थे। बूढ़े आदमी की आँखों में हमदर्दी देखकर रूमा बोली, " दादा मेरे पास पैसे नहीं है लेकिन मैं आपका काम कर देती हूं"। अब  बुजुर्ग आदमी को अपने पेट में भी कुछ मचलता हुआ महसूस हुआ।  भूख  ने  वहाँ भी घंटी बजा दी थी।  उसने बच्ची से कहा ,"जब तक कोई और नहीं आता है तुम यहीँ  बैठो, मैं अभी आता हूं और हाँ, जामुन को हांथ भी मत लगाना। "।   " सुबह से अभी तक एक भी जामुन नहीं बिका। कुछ बिक जाएं, फिर तुम्हें दूँगा"।
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रूमा दादा की दुकान पर बैठ गई और वह बूढ़ा आदमी थोड़ी देर के लिए दूसरी तरफ चला गया। जब वह लौटा उसके हाथों में  काग़ज़ में  लिपटी हुई  गरम-गरम पकौड़ी थी।  उसने कागज  रूमा की नन्ही हथेलियों में पकड़ा दिया और कहां बेटा जल्दी से  खोलो मुझे भी बहुत भूख लगी है। आओ हम दोनों मिलकर इन्हें खत्म कर देते हैं "।

रूमा और बूढ़ा आदमी दोनों मिलकर खा रहे थे और एक दूसरे के साथ यूं गप्पे मार रहे थे मानो सदियों से उनमें दोस्ती हो।

शाम  को  जब  आदमी घर लौटा तब उसकी पत्नी ने पूछा," आज की आमदनी में कुछ इजाफा हुआ"?  बूढ़ा आदमी पहले चुप रहा और उसके बाद उसने कहा," हां आज की आमदनी में बहुत बड़ा इजाफा हुआ है।  आज मुझे एक दोस्त मिल गई है। आओ मैं तुम्हें उससे मिलवाता हू," ।
रूमा दौड़कर औरत के गले लग गई। अब तीनों उदास दीवारों को अपनी हंसी के रंगों से सराबोर कर रहे थे।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर, बहुत भावपूर्ण, मर्म को छू लेने वाली, मानवता के भविष्य के प्रति आशान्वित करने वाली लघुकथा है यह। लेखनी को नमन।

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    1. धन्यवाद जितेन्द्र जी, उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभारी हूं।
      सादर

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  2. दूसरे का दर्द वही समझ सकता है जो उस दर्द से गुजरा हो
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लघुकथा ।

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