आज़ादी का अमृत महोत्सव: कुछ ध्यान रखने वाली बातें

 आजादी के अमृत महोत्सव पर हमारे देश में हर घर तिरंगा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके लिए सरकार और सरकारी कर्मचारी अपने पूरे जोश और लगन से काम कर रहे हैं और हर घर में तिरंगा उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। 

 दोस्तों यह बहुत अच्छी बात है कि हम अपने आज़ादी के पर्व को इतने गौरवपूर्ण तरीके से मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ताकि हर परिवार यह समझे कि वास्तव में आज़ादी का मतलब क्या है। 

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हम आजादी के अमृत महोत्सव पर इन 75 सालों में पलट कर देखते हैं  तो पाते हैं कि हमने भले ही बहुत कुछ न अर्जित किया हो लेकिन इतना तो अर्जित किया ही है कि उस पर गर्व कर सकें। चाहे पोखरण में परमाणु बम का परीक्षण हो या फिर अंतरिक्ष अभियान में आगे बढ़ना। कोरोना महामारी के दौरान दुनिया के देशों को सहयोग पहुंचाना हो या फिर आगे बढ़कर छोटे देशों को अपने अर्थव्यवस्था के माध्यम से मदद करने का काम हो। भारत ने एक से एक अच्छे काम किए हैं आज जिन कामों पर हम गर्व कर सकते हैं।

आज भारत एक सशक्त देश के रूप में आगे बढ़ रहा है और हमारी सरकार को,  हमारे प्रधानमंत्री की लोग प्रशंसा करते हैं। दुनिया भर में भारतीयों की थोड़ी इज्जत बढ़ी है। लेकिन अभी रास्ता लम्बा है। कई सारे ऐसे काम है जो हमें अभी और करने हैं और इन कामों को करने के लिए पूरी आम जनता को आगे आना होगा।

 वैश्विक भूख सूचकांक में 2019 में  भारत 102वाँ स्थान प्राप्त हुआ था जो हमारे पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश से भी नीचे था। हमारे देश में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या करोड़ों में है। 

भारतीय महिलाएं अपने आप को कार्यस्थल के साथ-साथ घरों में भी सुरक्षित महसूस नहीं करती। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट देखकर दिल दहल जाता है।  हर दूसरे मिनट में एक महिला का यौन उत्पीड़न। विकिपीडिया यह बताता है कि बलात्कार भारत में महिलाओं के खिलाफ़ चौथा सबसे आम अपराध है।

भ्रष्टाचार सूचकांक में भी भारत 180 देशों की सूची में 40 अंक लेकर 85 स्थान पर है। बैंकों के हाल बहुत बुरे हैं। हर दूसरा आदमी कर्ज के नीचे दबा हुआ है। क्रेडिट लेकर खर्च करने की आदत भारतीयों में विकसित हो रही है और यह आदत उन्हें कहीं का भी नहीं छोड़ेगी।

 एक समय था जब हमारे देश में कहा जाता था कि जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाए। अभी जमाना यह है कि आप पैर फैला लीजिए चादर का इंतजाम कोई और कर देगा और बाद में आप धीरे-धीरे अपने पैरों को काट कर चादर को पूरा कीजिएगा।

 दोस्तों दुनिया की देखा देखी हम अपनी अच्छी चीजों को भी पीछे छोड़ रहे हैं। हम अपने देश को एक पिछड़ा हुआ देश मानते हैं। अपने संस्कारों को ,अपनी संस्कृति को यह मानते हैं कि पिछड़ी हुई है और दूसरों का अनुकरण करते हैं। अपनी परंपराओं को यह सोच कर छोड़ रहे हैं इनसे इनमें कोई वैज्ञानिक सोच ही नहीं है। 

40 से 50 डिग्री टेंपरेचर में कोट पहन कर ही हम खुद को जेंटलमैन कहला सकते हैं। हम यह नहीं सोचते कि ईस्ट इंडिया कंपनी खत्म हो गई है,  देश आजाद हो गया है फिर हम उनकी देखा देखी आज भी क्यों कर रहे हैं? चाहे वेशभूषा हो या फिर हमारे विचार; हम अपनी संस्कृति, अपने देश का मौसम के अनुसार अपना रहन-सहन अपने कपड़े अपना खानपान क्यों नहीं कर सकते?

 दोस्तों हथकरघा उद्योग भारत में बहुत पुराना उद्योग है। प्रारंभिक दौर में गांधीजी के जमाने से ही चरखा पर सूत काटकर तिरंगा बनाया जाता था। तब तिरंगा बनाने की भावना हर व्यक्ति के अंदर देश प्रेम की अलख जगा देती थी।  आज हाथकरघा उद्योग उतना ज्यादा उन्नत नहीं है और कई बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आगे आ गई है जो कि तिरंगा बनाने का काम कर रही हैं। हर घर में तिरंगा पहुंचे इसके लिए सरकार मेहनत कर रही है। 

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आज़ादी के अमृत महोत्सव में हर घर में तिरंगा फहराया जाएगा। हर घर में एक तिरंगा होगा जिसे सम्मान के साथ उतारना,  रखना और अगले साल फिर उपयोग करने के बारे में भी चर्चा होनी चाहिए। 

तिरंगा कपड़े का हो,  उस पर कैमिकल वाले रंगों का प्रयोग न हो, प्लास्टिक से बनाया हुआ तिरंगा उपयोग न किया जाय, तिरंगे को नालियों या कचड़ा में न फेंका जाय जैसी बातें भी लोगों को बताने की आवश्कता है। 

तिरंगा बेचने वाले दुकानदार हों या बनाने वाली फैक्ट्री, यह काम देशप्रेम के जज़्बे के साथ देश को स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की जिम्मेदारी के साथ करें ।

 हर घर में तिरंगा उपलब्ध कराने के साथ यह जागरुकता भी फैलाएं कि शाम होने के बाद तिरंगा को किस प्रकार इज्जत के साथ उतारना है और रखना है तभी आज़ादी की यह वर्षगांठ अमृत महोत्सव बन पायेगी। 

टिप्पणियाँ

  1. सहमत ! बहुत सुंदर सराहनीय तथ्य ।

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  2. आपने कुछ सार्थक प्रश्न उठाए हैं एवं उनके उत्तर भी प्रस्तुत किए हैं। इन बातों पर विमर्श प्रायः नहीं हो रहा है जो उचित नहीं है। तिरंगा फहराने के साथ-साथ उसकी गरिमा एवं सम्मान की तथा पर्यावरण की भी पूर्ण सुरक्षा की जानी चाहिए।

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