आज़ादी के अमृत महोत्सव पर कविता

 पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त 
पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त 
अंग्रेज सूर्य जब हुआ अस्त 
हर भारतवासी हुआ मस्त
पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त 

  
खुशियों की तब रौनक आई,  
खेतों में हरियाली  छाई,
हर घर में तब उल्लास हुआ, 
सपनों का दिन आबाद हुआ, 

फिर कलम चली आज़ादी से ,
बेड़ियाँ बोल पर टूट गई ,
न कोई कैद रही मन पर ,
शाशन से कोइ न रहा त्रस्त, 
पंद्रह अगस्त , पंद्रह अगस्त 
पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त ।

वो राजगुरु,  वो भगत सिंह, 
बिस्मिल हों या अशफ़ाक उल्ला, 
आज़ाद,  बोस,  गांधी जी की, 
कुर्बानी नहीँ गई व्यर्थ,
पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त 
पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त ।

रच रहे आज हम नव भारत, 
दुनिया में परचम लहराए, 
आज़ादी के मतवालो की, 
सीखो पर चलकर दिखलायें। 

यह पर्व नहीं कोई घटना, 
झंडा फहराया,  भूल गए, 
इसकी कीमत नव पीढ़ी को 
है जिम्मेदारी बतलायें, 

जब हर गरीब,  हर दुःखी व्यक्ति 
पूरी कर पाए हर इच्छा ,
आजाद देश का हर प्राणी 
एक-दूजे का सम्मान करे, 

न धर्म जाति,  न रंग भाषा 
 न कोई इनमें भेद करे, 
ऐसा हो अपना देश आज ,
हर नर नारी खुशहाल रहे 

पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त 
यह देश सदा आबाद रहे ।2।।

टिप्पणियाँ

  1. आज़ादी के अमृत महोत्सव की शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 12 अगस्त 2022 को 'जब भी विपदा आन पड़ी, तुम रक्षक बन आए' (चर्चा अंक 4519) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं

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