एक बेटी की इच्छा

 

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चाहती हूं लौट जाना 

मां की कोख में,  फ़िर एक बार ,

धरती पर आने का इंतज़ार करना चाहती हूं, 

नौ माह देखना चाहती हूं पिता को मां के पेट पर हांथ फेरते हुए, 

आंखों में लिए असीम प्रेम, माधुर्य के दिनों का एहसास, 

मेरा आना हो सकता है चमत्कार, 

टूटते रिश्तों में मधु बन उतर जाना चाहती हूं, 

 ग़र घूंट घूंट पिया जाय प्रेम, 

तो जिंदगी भर ख़त्म न हो, 

तलाक के काग़ज़ शायद उड़ जाएं खिड़की से बाहर, 

जैसे फेंक दी जाती हैं अनचाही चीजें कबाड़ के साथ, 

मां और पिता फ़िर साथ बैठ सपनों में खो जाएं 

और मैं 

उनके प्रेम की साक्षी बन स्थिर हो जाऊँ उन दीवारों की जगह। ।



टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा मंच - 4552 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  2. एक बिटिया की अनकही कामनाओं को संजोती एक सार्थक रचना प्रिय अपर्णा। काश बिटिया को बोझ समझने वाले समझ सकें कि बिटिया घर की रौनक और सृष्टि में सृजन का मूल है।

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  3. माँ-पिता के प्रेम के साक्षी बच्चे ही होते हैं और उनमें आयी दूरियों के भी, जिनका असर उनपर ताउम्र रहता है

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  4. हृदय स्पर्शी सृजन।
    बहुत कुछ कह गया।
    सुंदर।

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  5. कल्पना की अप्रत्याशित उडान।
    बधाइयाँ।
    साझा करने हेतु आभार।

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  6. माता पिता के अलगाव से व्यथित एक बेटी की ख्वाहिश । सुंदर अभव्यक्ति ।।

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  7. मन में एक टीस जगाती प्रेरक रचना... बहुत सुन्दर!

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