यादें, जो भूलती नहीं
यादें 1
जब कभी उग आते हैं यादों में गुलाब,
अंधेरी रातों में जुगनुओं की तरह चमकता है वक़्त,
आंखों की कोरों पर उतर आती है ख़ामोशी ,
धड़कता है कुछ अनायास,
जैसे टूट गया हो कोई तार
वाद्य की साँझ के निकट। ।
यादें 2
तुम्हारा लौटना मोहता है,
जाना थोड़ा कठिन;
कितने आवेग होंठों पर ठहर जाते,
मानों लौट कर कोई नजर
छुप गई दिल के भीतर,
इस बार फूलों के नीचे सोते हुए तुम्हारा आना
तिरंगे की चादर लपेटे
ऐसा भी कोई करता है भला!
अधूरी राह में हांथ छोड़
बढ़ जाना किसी और दिशा।
Image credit Google |
यादें 3
मन्द हुईं साँसों से पूछ लूँ एकबार
क्यों टूट गई सजधज,
तुम्हारी चौखट पर
अंतिम बार पंहुच
जला हुआ हांथ देखा;
खोजा उन उँगलियों को
जिन्होंने बांधे थे कलाई पर रक्षा के धागे,
देर हुई इसबार
टूट गई आशा
माफ़ मत करना बहन !!
©️Aparna Bajpai
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(०५-०९ -२०२२ ) को 'शिक्षा का उत्थान'(चर्चा अंक-४५४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार अनीता जी, रचना को मंच पर प्रस्तुत करने के लिए
हटाएंसादर
बहुत सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइन रचनाओं ने झंकृत कर दिया है मुझे।।।। बेहतरीन भावों को समेटे सुम्दर लेखन।।। बहुत बहुत बधाई।।।।
जवाब देंहटाएंआभार पुरुषोत्तम जी सादर
हटाएंइन रचनाओं ने झंकृत कर दिया है मुझे।।।। बेहतरीन भावों को समेटे सुन्दर लेखन।।। बहुत बहुत बधाई।।।।
जवाब देंहटाएंओह ! मत माफ़ करना बहन...आँखें नम हो गई| तीनों रचनाएँ सुंदर !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मधु जी
हटाएंसादर
एक सैनिक के जीवन की कथा ..... उसकी पत्नी की व्यथा को किस कदर भावुक शब्द दिए हैं ।
जवाब देंहटाएं3 नम्बर की क्षणिका ने तो रुला ही दिया । लाजवाब 👌👌👌
शुक्रिया दी, आपका नेह यूं ही बना रहे
हटाएंसादर
भाव विभोर रचनाएं
जवाब देंहटाएंआभार ऋतु जी
हटाएंसादर
धन्यवाद दी, मंच पर स्थान देने के लिए, सादर
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