प्रेम के सफर पर


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चलो एक सीढ़ी चढ़ें

लंबी वाली; पकड़ एक दूसरे के हांथ,

आसमान से झांकते चांद को छूने का भ्रम पालें,

जैसे दोनो हाथों के बीच पकड़ लेते हैं 'ताजमहल' तस्वीर में, 

आओ न, सहलायें  पत्तियों की पीठ, 

गुलाब के कान में कहें अपनी बात ,

नदी के गीत पर मचलने दें घुँघरूओ को,

कहें अलविदा जाते हुए लोगों को,

रोका नहीं जा सकता जिन्हें, 

प्रेम से ज्यादा प्रेम के किस्से कहे जाते हैं, 

 जैसे चाँद उतरता है आधी रात, 

खण्डहर में घूमती आत्मा के पास ,

हम भी उतर आयेंगे जीवन की सतह पर 

रोमांचक सफर से लौटना ही होता है 

कहीँ न कहीँ ।।


©️अपर्णा बाजपेई 




टिप्पणियाँ

  1. कुछ सपने सच में बहुत मधुर और मोहक होते हैं।अनुरागरत हृदय की बडी प्यारी-सी कामना प्रिय अपर्णा।खूब-खूब स्नेह और शुभकामनाएं ♥️

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 09 सितंबर 2022 को 'पंछी को परवाज चाहिए, बेकारों को काज चाहिए' (चर्चा अंक 4547) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम से ज्यादा प्रेम के किस्से कहे जाते हैं,
    वाह!!!
    बहुत खूब...लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  4. धरातल पर तो उतरना ही पड़ता है. पर मध्यांतर में आकाशकुसुम चुनने में क्या हर्ज़ है ?

    जवाब देंहटाएं

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