"Phooli" film review Hindi

 “फूली“ फिल्म समीक्षा 

फूली फिल्म के निर्देशक अविनाश ध्यानी के निर्देशन का जादू सिनेमा घरों की स्क्रीन पर दर्शकों को खींच रहा है। 7जून को रिलीज़ हुई यह फिल्म दर्शकों को प्रभावित कर रही है। फ़िल्म के निर्माता मनीष कुमार के होम टाउन जमशेदपुर में यह फिल्म अब भी दर्शकों में उत्साह बनाए हुए है।


उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म “फूली” एक ऐसी लड़की की कहानी कहती है जो अपने जीवन की कठिनाइयां से लड़ते हुए अपने सपने को पूरा करती है। फिल्म का कथानक इसकी सबसे बड़ी ताकत है और “फूली” के रोल में रिया बलूनी अपने किरदार में उन सभी लड़कियों का नेतृत्व कर रही हैं जो लड़कियां अपने हौसलों से आकाश की ऊंचाइयों को नाप लेना चाहती हैं।

'अपने जीवन में जादू हमें खुद करना होता है' यह एक लाइन फिल्म की ऐसी टैगलाइन है जो पूरी फिल्म को बयां करती है।  हम सब के जीवन में कठिनाइयों का अंबार लगा है। हम हर रोज उन मुश्किलों से लड़ रहे हैं कि हम उनके पीछे हो रहे उस जादू को देख नहीं पाते जो बस होता रहता है। जीवन को बदलने के लिए हमारे प्रयासों से कुछ ना कुछ ऐसा होता रहता है जो हमें उस समय नहीं दिखता लेकिन एक लंबी अवधि में उसका असर बड़े फलक पर नज़र आता है।

अविनाश ध्यानी ने  फ़िल्म "72 ऑवर्स" बनाई थी जिसे लाखों लोगों ने न सिर्फ देखा था बल्कि उसकी सराहना भी की थी। अब वही निर्देशक “फूली” में एक "जादूगर" निर्देशक बनकर सामने आए हैं।


फूली के पिता की भूमिका में देश के सीमांत गावों और हाशिए पर रह रहे लोगों की जिंदगी में नशे की लत और अपनी ख्वाहिशों को पूरा न कर पाने के पीछे की निराशा न जाने कितने परिवारों के मुखिया को विलेन बनाकर छोड़ती है। सच यह है विकास की मुख्य धारा से पीछे छूट गए लोगों की हताशा उन्हें उस रास्ते पर लाकर खड़ा कर देती है जिससे वे कभी अलग नहीं हो पाते। थोड़ी सी इज्जत, थोड़ी सी पहचान और थोड़े से पैसे हारे हुए इंसान की वह ख्वाहिश है जिसे वह कभी पूरा नहीं कर पाता। 

रिया बलूनी ने फूली की जिंदगी को बखूबी पर्दे पर उतारा है वहीं सुरुचि सकलानी ने बड़ी फूली के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने में शानदार अभिनय किया है। पहाड़ की लड़की, उसके संघर्ष, दुख, तड़प, आकांक्षा हर भाव को पर्दे पर बेहतरीन तरीके से उतारा गया है और इसके पीछे है अविनाश ध्यानी की पहाड़ों की समझ। स्वयं अविनाश ध्यानी ने महेंद्र सरकार का रोल किया है जो एक मशहूर जादूगर है। अपने अभिनय और संवाद अदायगी से अविनाश ने प्रभावित किया है। 


फूली के गुरुजी की आंखों में दिख रहे गर्व को हर कोई देख सकता है। निर्देशक के हांथ जब कुछ ऐसा बनाते है जिसे वह दिल से महसूस करता है तो स्क्रीन पर जादू होता है। जादूगर की भूमिका में कसा हुआ अधिनय और कहानी कहने की कला ने निर्देशक को एक जमात आगे लाकर खड़ा कर दिया है।


शिक्षा के महत्व को दर्शकों के सामने रखने और अपनी किरदारों के माध्यम से देश के आम जन-जीवन के संघर्षों के बीच ख्वाहिशों को पूरा करने का संदेश देती हुई “फूली” फिल्म सिनेमा घरों में अपना जादू दिखा रही है। आप भी अपने नजदीकी सिनेमा घर में जाइए और एक ऐसी फिल्म देखिए जो आपको कठिनाइयों से पार पाने का हौसला देती है।


अपर्णा बाजपेई 

जमशेदपुर, झारखंड 

 


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