यार ठहरो न कुछ देर और!

 जाते हुए नवंबर से 

आते हुए दिसंबर से 

कोई पूछता नहीं 

हाल- चाल, चाय - कॉफी,

नहीं कहता, यार ठहरो न कुछ देर और! 

बड़ा अच्छा रहा तुम्हारा साथ, 

रखकर हाथ सीने पर सुनाता नहीं कोई धड़कने,

 भूल जाता है शुक्रिया में झुकना, 

दिनों महीनों का साथ क्या यूं ही भूल जाएं 

स्मृतियों की ज़िल्द इन तारीखों से ही बनती है।।



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