आहिस्ता -आहिस्ता
समय हो तो अपनी हथेली पर भी रख लेना एक फूल, घूम आना स्मृति के मेले में, कहानी की किताब में झांक कर, कर लेना बातें ' पंडित विष्णु शर्मा ' से, या घर ले आना ' नौकर की कमीज़ ' सुन लेना रजनीगंधा की फूल या ठुमक लेना ' झुमका गिरा ' की धुन पर कह लेना खुद से भी "Relax ! चंद कदम ही तो हैं, चल लेंगे आहिस्ता-आहिस्ता हम भी, तुम भी।।
क्या बात है। 'शब्दों के पुलिंदे'तेल नमक लगाकर डकार सकते हैं। चौराहे पर पसरी क्रांति का जश्न।
जवाब देंहटाएंबड़ा अलंकारिक प्रयोग। इस कारण उग्रता में उष्णता आ गयी। बढ़ियाँ।