कविता के मायने


कविता के सिरहने पड़ी हैं
कितनी अबूझ पहेलियाँ,   
मेरा- तुम्हारा प्रेम,
हमारे सीले दिनों की यादें,
दर्द सिर पर रखे भारी समझौतों वाले दिन;
और कविता के पैताने!
वो हाँथ जोड़ कर बैठना,
कि एक दिन लौट आयेंगे हमारे भी दिन,
टपकना बंद हो जाएगा बरसात का पानी 
बच्चे के सिर पर,
मेघ करेंगे धरती से प्रेमालाप, 
हरियाली चादर ओढ़;
धरा करेगी स्वागत हमारी उम्मीदों का,
खाली पड़ी बखार भर जायेगी अनाज से, 
हम खरीदेंगे अपने सपने अनाज के बदले, 
निखर जायेगी हमारी भी ज़िंदगी;
हम बैठे ही रहे कविता के सिरहने - पैताने,
और कविता!
अट्टालिकाओं की हो गयी........ 
हम गूंथते ही रहे अक्षर- अक्षर खाली स्लेटों पर
और कविता!
चिढ़ा गयी हमें हमारी खुरदुरी हथेलियां देख,
कविता कैद हो गयी महलों में, तिजोरियों में,
और हम!
बाट जोहते रहे अपनी झोपड़ी के बाहर।।

(picture credit google)

टिप्पणियाँ

  1. कविता कैद हो गयी महलों में, तिजोरियों में,
    और हम!
    बाट जोहते रहे अपनी झोपड़ी के बाहर......

    मन के भाव को आपने बखूवी कविता में उतारा है कम शब्दों में कितनी ही बातें कह गई आप।

    मुग्धभाव से तारीफ आपकी

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  2. वाह!!!
    बहुत सुन्दर......
    कविता कैद हो गई महलों में तिजोरियों में,
    बेहतरीन प्रस्तुति ।

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  3. बहुत सुंदर भाव और शब्द रचना अपर्णा जी,
    कविता दिल से निकले भाव होते है जिसे अपनी जरुरत के हिसाब से हम शब्दों के कपड़े पहनाते है।
    बहुत शुभकामनाएँ मेरी।

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    उत्तर
    1. जी, आदरणीय श्वेता जी, सच कह रही हैं आप.सादर धन्यवाद

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  4. Aaj ye rachna padhkar mehsus hua ki shabd kitna kuchh sama lete hain apne andar.
    Bahut khubsurat varnan kiya hai.

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  5. हक़ीक़त जब दिखती है तो शब्द बेमानी हो जाते हैं ... कविता किताबों में बंद हो जाती है कठोर धरातल पर ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  6. उनके अच्छे दिन कहीं गुम न हो जाय इसलिए कुछ लोगों के अच्छे दिन कभी नहीं आ पाते
    मर्मस्पर्शी रचना

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