कविता के मायने
कविता के सिरहने पड़ी हैं कितनी अबूझ पहेलियाँ, मेरा- तुम्हारा प्रेम, हमारे सीले दिनों की यादें, दर्द सिर पर रखे भारी समझौतों वाले दिन; और कविता के पैताने! वो हाँथ जोड़ कर बैठना, कि एक दिन लौट आयेंगे हमारे भी दिन, टपकना बंद हो जाएगा बरसात का पानी बच्चे के सिर पर, मेघ करेंगे धरती से प्रेमालाप, हरियाली चादर ओढ़; धरा करेगी स्वागत हमारी उम्मीदों का, खाली पड़ी बखार भर जायेगी अनाज से, हम खरीदेंगे अपने सपने अनाज के बदले, निखर जायेगी हमारी भी ज़िंदगी; हम बैठे ही रहे कविता के सिरहने - पैताने, और कविता! अट्टालिकाओं की हो गयी........ हम गूंथते ही रहे अक्षर- अक्षर खाली स्लेटों पर और कविता! चिढ़ा गयी हमें हमारी खुरदुरी हथेलियां देख, कविता कैद हो गयी महलों में, तिजोरियों में, और हम! बाट जोहते रहे अपनी झोपड़ी के बाहर।। (picture credit google)