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प्रेम-राग

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बड़ा पावन है धरती और बारिश का रिश्ता, झूम कर नाचती बारिश और मह-मह महकती धरती; बनती है सृष्टि का आधार, उगते हैं बीज, नए जीवन का आगाज़, शाश्वत प्रेम का अनूठा उपहार, बारिश और धरती का मधुर राग, उन्मुक्त हवाओं में उड़ती, सरस संगीत की धार, तृप्त जन, मन, तन तृप्त संसार. #AparnaBajpai

समलैंगिक प्रेम

बड़ा अजीब है प्रेम, किसी को भी हो जाता है, लड़की को लड़की से, लड़के को लड़के से भी, समलैंगिक प्रेम खड़ा है कटघरे में, अपराध है सभ्य समाज में, नथ और नाक के रिश्ते की तरह, बड़ा गज़ब होता है, एक होंठ पर दूसरे होंठ का बैठना, बड़ी चतुर होती है जीभ दांतों के बीच, कभी-कभी पांच की जगह छः उंगलियां भी रोक नहीं पाती एशियाड में सोना मिलने से, गोरी लड़की के काले मसूढ़े भी, बन जाते हैं कुरूपता के मानक, एक दांत पर दूसरे दांत का उग आना, गाड़ देता है भाग्य के झंडे, इस समाज में अजीब बातें  भी हो जाती हैं स्वीकार, फ़िर, समलैंगिक प्रेम! क्यों रहा है बहिष्कृत? क्यों है यह अपराध? जिस समाज में प्रेम ही हो कटघरे में वंहा समलैंगिकता पर बात! हुजूर, आप की मति तो मारी नहीं गई, विक्षिप्तता की ओर भागते दिमाग को रोकिये, गंदी बातें कर पुरातन संस्कृति पर छिड़कते हो तेज़ाब, ज़ुबान न जला दी जाए आपकी.... साफ़ सुथरी कविता लिखिए, फूल ,पत्ती, चांद, धरती कितना कुछ तो है, देखने सुनने को, फ़िर... अपनी मति पर कीचड़ मत पोतिये, कुछ बातें सिर्फ़ किताबों के लिए छोड़िये, प्रेम के अंधेरे गर्तों को मत उलीचिये, रहने दीजि