चुड़ैल (कविता)
मेरे गांव में उतरा करते हैं प्रेत, जवान लड़कियों की दाग दी जाती है ज़बान, मिर्चा और सरसों का धुँआ प्रेत भगाने का अचूक हथियार है, औरतों के ही शरीर में पैठती है चुड़ैल, बन्द किवाड़ों के भीतर चुड़ैल भगाता है गांव का ओझा, औरतों की पीठ जलते कोयले को बर्फ़ में बदल देती है, जूड़े में पलाश की आग जलाकर लड़कियां प्रेत को बांध लेती हैं अपनी गांठ में, महुआ की गंध चुड़ैल का इत्र बन जाती है औरतें रज में बहा देती हैं ओझा का तंत्र, सरसों और मिर्च को चटकार जाती हैं नन्ही अमियों के साथ, गोल दुनिया को दरवाज़े पर लटका; औरतें चुड़ैलों के साथ खेल लेती हैं अक्कड- बक्कड़। ©️अपर्णा बाजपेयी