संदेश

दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नए साल में नई आस

चित्र
 छोटे छोटे पदचिन्हों संग आता है हर साल नया, नया कैलेंडर, नई बात लेे सुरभित होता साल नया। नई उमंगें, नई तरंगें नई चाल यह लाता है मुरझाए चेहरों पर आकर नई आस मल जाता है, बाग बगीचे, ताल तलैया तितली, रंग, फूल बिखरे, घर आंगन में पग रखकर यह नए प्लान बनाता है। बच्चे बच्चे कहते सब से हैपी हो यह साल नया, धूम धड़ाका पिकनिक - शिकनिक झरती खुशियां, हाल नया। 2021 लाएगा  मतवाली हर शाम नई, परिवारों में हो पाएगी मस्ती वाली बात नई, साथ बैठ कर खाएंगे सब पूछेंगे सबका सब हाल, दौड़भाग से बच थोड़ा सा मन को करेंगे माला माल, अपनी बातें अपने सपने बांटेंगे परिवारों में, एकाकी होते जीवन को, खोलेंगे निज उपवन में,  कोरॉना से मिली सीख को सींचेंगे जीवन में सब, प्रकृति दे रही जो कुर्बानी, उसका मोल समझेंगे अब नए साल में , नए हाल में ख़ुद का साथ निभाएंगे, थोड़ा ज्यादा जी कर खुद को सेहतवान बनाएंगे।। ©️ अपर्णा बाजपेई

आना जाना

चित्र
 चांदी के तार उतर आए हों बालों में भले ही, झुर्रियां थाम रही हों हांथ चाहे जितना, दुखते हों पोर तन के भले ही अक्सर, मेरे दोस्त, ज़रा ठहरो भीतर: देखो कि अब भी उछलता है दिल नया कुछ करने को, सवार हो घोड़े पर सारा जहां टटोलने को, चाहते बढ़ रही हों जैसे प्यार नया, बसंत के मौसम में खिली हो जैसे सरसों, टूटना मत मेरे दोस्त उम्र के सामने कभी, सिर्फ गिनती हैं वर्ष और उनकी गांठे, फिराओ हांथ अपनी रूह को दो ताकत, ये समय है ये भी गुज़र जायेगा .. ©️Aparna Bajpai

आवाज़

चित्र
आवाज़ के सिरे पर तुम्हारे होठ कांपे थे कांप गई थी हवा कंठ में, शब्दों ने बोसा दिया था मेरे माथे पर, आंखों ने अंजुरी भर जल छींट दिया था मरुस्थल में, तुमने कहा था, जो तुम्हें नहीं कहना था! हृदय की धड़कन ने कहा था सच; जानती हो न! हवा के तार ने आकाशगंगा में फेंक दिए थे कुछ फूल, तुमने ताका था जब चांद आधी रात के बाद, मैं चुपचाप निहार रहा था तुम्हारा चेहरा;  चांद की शक्ल में, देश दूसरा है तो क्या हुआ  हवाओं ने चुराकर खुशबू तुम्हारे बालों से मेरी हंथेलियों पर रख दी है, कहो न आज! कितना खूबसूरत है जीवन तुम्हारी आवाज़ मेरे जीवन का आख़िरी सच है।। ©️अपर्णा बाजपेई

कामकाजी औरतें

चित्र
 ख़ुदा उन औरतों के कदमों में बैठ गया,  लौटते ही जिन्होंने परोसा था खाना बूढ़े मां- बाप को, उंगलियों से संवार दिए थे नन्हे पिल्ले के बाल, मुस्कुराकर लौटाया था, पड़ोसी के ख़ाली डिब्बे में मूंग दाल का हलवा, समय से होड़ लेती औरतें, कामकाजी होने के कारण बदनाम थीं, बदनाम औरतों ने खिदमत की परिवार की,  वे कमी को भी बरकत बता ,  पोछती रहीं पतियों की पेशानी से पसीना, वे भूल गई थीं अपनी अलको को समेटना धीरे से, अपने हाथों पर क्रीम की मसाज करना , पैरों को डाल गुनगुने पानी में धो देना मन का गुबार, काम का बोझ उनकी पलकों पर टंगा रहा, बॉस की झिड़की नाचती रही पुतलियों के आस - पास आंखों में काजल डाल वे खड़ी रहीं गृहस्थी की सरहद पर आमदनी में बढ़ाने को शून्यों की संख्या; वे तोड़ती रहीं अपनी कमजोरियों की सीमारेखा, वे औरतें काम में तल्लीन रहीं और दुनिया उनकी कमियां गिनने में। जब जब रखतीं वे पांव जमीन पर, ख़ुदा उनके साथ चलता, उनकी आंखों में आत्मविश्वास की चमक, ख़ुदा का दिया हुआ नूर था... और उनकी कमियों को गिनने में डूबी दुनिया उसी नूर से रौशन थी।। ©️ अपर्णा बाजपेई