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पेंटिंग (धारावाहिक कहानी) भाग 3 अंतिम भाग

आरोही पाकिस्तानी मां और ब्रिटिश पिता की बेटी थी जोकि अमेरिका में बेबाक जीवन जीती थी।  साहिल के साथ वह एक ही कंपनी में काम करती थी।  धीरे-धीरे साहिल और आरोही में नजदीकियां बढ़ने लगी थी। साहिल  की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं था जो यह दावा करता कि वह आरोही से प्यार करता है लेकिन आरोही  साहिल की तरफ़ आकर्षित थी और कोशिश करती थी कि साहिल भी उसे उतनी ही तवज्जो दे जितनी वह दे रही हैं।   आरोही की पाकिस्तानी मां कुछ ऐसे कामों में लिप्त थी जो कानूनी रूप से सही नहीं थे। आरोही नहीं चाहती थी कि उसकी मां के बारे में किसी को पता चले या उसके घर में किस तरह के काम होते हैं या किस तरह का माहौल है साहिल जान पाए। धीरे-धीरे आरोही और साहिल नजदीक आ गए थे। भले ही मन के स्तर पर उनके बीच बहुत ज्यादा नजदीकी न हो पाई हो लेकिन शारीरिक तौर पर नजदीक थे। मधुलिका धीरे-धीरे साहिल के दिलो दिमाग से गायब हो रही थी लेकिन फिर भी कुछ ऐसा था कि हर रात सोने के पहले एक बार मधुलिका का चेहरा साहिल की नजरों के सामने से घूम जाता था। वह हमेशा चाहता था कि मधुलिका ही उसके साथ , उसके जीवन में उसके पास रहे ।   एक दिन साहिल और आरोही अपने घर म

भावनाओं का बाज़ार (कविता)

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बिकता है आदमी,    मुर्दा भी! अगर हो कामयाब या चहेता; बस बेचने वाला हो तेज  पकड़ रखता हो बाज़ार की नब्ज़ पर,  फैन काट लेते हैं नस तक,  फ़िर टी शर्ट क्या चीज़ है, ऊपर से छूट भी! अपने हीरो को अपने पास रखने के लिए खरीद ही लेंगे, इंसानियत की औकात ही क्या है?? #Bycotflipcart , #sushantsinghrajput , 

मेरी नज़र में कहानी 'नेताजी का चश्मा '

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नेता जी का चश्मा 'स्वयं प्रकाश' जी की एक कहानी है 'नेता जी का चश्मा'। यह कहानी पाठ्यक्रम में शामिल है और देशभक्ति की भावना को बल प्रदान करती बेहतरीन कहानी है।   कहानी में कैप्टन का चरित्र लोगों को एक साथ कई संदेश देता है। जब पाना वाला कहता है  “वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी इशारा करती है उस ओछी मानसिकता की ओर जो दिव्यांगों को हीन समझती है।  कैप्टन एक बूढ़ा कमजोर आदमी है जो चश्मे बेचता है। वह जब भी सुभाष चंद्र बोस जी की मूर्ति पर चश्मा गायब देखता है तो  जो भी खाली फ्रेम उसके पास होता है उसे लगा देता है।  कैप्टन की नजर में मूर्ति पर चश्मा ना होना एक अधूरापन है और यह अधूरापन इंगित करता है उस नजरिए की ओर जो यह कहता है कि अगर हमारा चश्मा ठीक है, हमारी नजर ठीक है तो हम सब कुछ ठीक-ठाक देख सकते हैं। Image credit Dreamstime  दोस्तों स्वयं प्रकाश जी की एक कहानी कई तरीके से देखी जा सकती है। पुरानी समीक्षा पढ़ने के बाद लगता है कि देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित करने के लिए स्वयं प्रकाश जी ने कैप्टन का चरित्र रचा है  लेकिन वहीं पर

पेंटिंग का राज (धारावाहिक कहानी) भाग 2

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मधुलिका को आज नींद नहीं आ रही थी। सारी रात करवटें बदलते- बदलते बीती।  मधुलिका ने कई बार सोचा कि क्यों ना उठकर अदनान के पास जाएं और उससे बात करने की कोशिश करें। लेकिन ऐसा संभव नहीं था एक अनजान आदमी के पास रात में जाना और उससे बात करने की कोशिश करना अपने आप में ही बहुत शर्मिंदा करने वाला विचार था। अगले दिन सुबह नास्ता करते हुए मधुलिका ने देखा कि अदनान साइड वाले टेबल पर अकेले ही बैठकर ब्रेकफास्ट कर रहा है।  पिछले दिन की बातचीत से दोनों के बीच एक बार मुस्कुराहट का आदान-प्रदान हुआ। मधुलिका ने भी अपनी प्लेट लेकर उसी के साथ बैठकर नाश्ता करने के बारे में सोचा। तब तक अदनान ने खुद उसे अपने पास बुलाते हुए कहा कि, " आप हमारे साथ बैठकर नास्ता कर सकती हैं।  हम इतना तो एक दूसरे को जानते ही हैं"। अदनान और मधुलिका दोनों एक ही टेबल पर बैठ कर बात कर रहे थे और खा रहे थे।   Image credit shuterstock अदनान बड़े इत्मीनान से खाने का मज़ा  ले  रहा था और बहुत धीरे-धीरे खा रहा था। उसको खाते हुए देखकर लग रहा था जैसे साहिल उसके सामने बैठा हो।  पहले तो वह उसे टोक देती थी और कहती थी " साहिल,  इतनी धीरे

पेंटिंग का राज़ ( धारावाहिक कहानी ) भाग 1

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  वे दोनों अलग अलग शहरों में थे . जहाँ ज़िंदगी इतनी बेतरतीबी से बीत रही थी कि उम्हें अपनी सांसों का भी इल्म न था . समय हवा के हिंडोले पर सवार था और ज़िंदगी रसहीन झोंके ले रही थी. मधूलिका उम्र के साथ और निखर रही थी . घर के लोग चाहते थे की जल्द से जल्द वह अपना घर बसा ले और माता पिता को अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति दे . लेकिन सवाल सिर्फ शादी का नहीं था वे चाहते थे की मधूलिका खुश भी रहे . लेकिन किसी अनजान आदमी के साथ सात फेरे ले लेने से खुशियों की गारंटी तो नहीं मिल जाती . वह जब भी आँखें बंद करती तो उस सख्स का चेहरा उसकी नज़रों के सामने आ जाता जिसने कभी शादी का वायदा नहीं किया था. न ही कोई कस्में वादे हुए थे उनके बीच. वे तो सर्फ साथ-साथ रहना कहते थे ताकि अपनी खुशियाँ – अपने गम बाँट सकें. साहिल मधुलिका से बहुत दूर था सात समंदर पार. दोनों के बीच कोइ राब्ता नहीं था सिर्फ पिछली यादों के सिवा. एक दिन सुबह के यही कोइ तीन बजे होंगे कि   साहिल के मोबाइल पर एक मैसेज आया. क्या तुम अब भी न्यूयार्क में हो ? न पूछने वाले का नाम परिचय . सुबह जब साहिल ने मैसेज देखा तो न जाने क्यूं सबसे पहले उसके दिमाग मे

चौधराइन का हुक्का (लघु कथा)

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 चौधरी का हुक्का.. क्या कहा जाय!  सबके मुंह लगने को बेताब.. मगर चौधराइन जब  देखो तब, दरवाजे की ओट में रख देती हैं कि कोई दरवाज़े के सामने से पार हुआ नहीं कि मियां बुला लेंगे और हुक्का तफ़री शुरू...   चौधराइन अपनी दादी की आख़िरी निशानी के तौर पर मायके से लाई थी, तब से पूरे गांव का दुलारा बना हुआ है चौधराइन का हुक्का। अब ख़ुद भी अस्सी बरस की हो गईं हैं और चौधरी तो नब्बे पार कर रहे होंगे लेकिन हुक्के की लत न छूटी। Image credit pixabay  हुक्का भी सबको पहचानता है, अब्दुल पठान हों या बंशीधर पंडित..उंगलियों का स्पर्श बखूबी जानता है. जनानी उंगलियों की छुअन तो हुक्के के भीतर का पानी भी समझ जाता है।  एक दिन हुआ यूं कि रामरतन की दादी का हुक्का टूट गया और दादी के दिमाग की सारी गालियां रामरतन की दुलहिन पर न्योछावर हो गईं.. रामरतन को नया हुक्का लाने का आदेश हो गया.. अब उसी दिन उसी समय  हुक्का कैसे आये.. राम रतन परेशान... न लाया तो दादी का खाना हज़म नहीं होगा और पूरा घर उनके पेट की  गैस पुराण सुनते सुनते पागल हो जाएगा .  राम रतन ने साईकिल निकाली और चल पड़ा शहर की ओर।  इधर सुबह से शाम हो गई राम रतन को कह

आमदनी (लघु कथा)

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  ट्रैफिक सिग्नल पर गुब्बारे बेचने वाली रूमा आज कुछ उदास थी।  उसके और दोस्त अभी तक नहीँ आए थे।  गुब्बारे भी नहीं बिक रहे थे। रूमा को जोर की भूख लगी थी। उसकी अम्मी दूसरे शहर गई हैं  कल लौटेगी।  तब तक उसे अकेले ही रहना है। यही सब सोचते हुए रूमा चौराहे के किनारे लगे पेड़ के पास बैठ गई और उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी सड़क के उस पार बैठा हुआ कुछ बेच रहा है । रूमा सड़क पार करने का इंतजार करने लगी।  जैसे ही ट्रैफिक की गाड़ियां कम हुई, रूमा ने सड़क पार की और दूर बैठे उस बूढ़े आदमी के पास पहुंची।  बूढ़े आदमी के सामने कुछ  ताजे जामुन रखे हुए थे। वह उन्हें पत्तल की टोकरियों में बेच रहा था ₹5 का एक, ₹5 का एक । रोमा कुछ देर तक उन  जामुन को देखती रही।  पेट की  भूख  और  उन  जामुन  की  चमक  उसे  लालच दे  रहे  थे। रूमा ने  झिझकते  हुए  कहा, "क्या आप मुझे थोड़े से जामुन खिलाएंगे"?  बूढ़े आदमी ने रूमा की तरफ देखा।  फटी पुरानी फ्रॉक,  पैरों में चप्पल नहीं, बाल बिखरे हुए लेकिन आंखों में गजब की चमक। उसके पास पैसे नहीं थे। बूढ़े आदमी की आँखों में हमदर्दी देखकर रूमा बोली, " दादा मेरे पास पैसे नही

ज़माने के साथ(लघु कथा)

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अम्मा को आजकल गठिया का दर्द बहुत परेशान करता है। नींद भी आधी रात से ही धोखा दे जाती है। बहुत देर तक करवटें बदलती हुई अम्मा को जब नींद नहीं आई तो वे जल्दी ही उठ गई और सोचा क्यों न घर का कुछ काम कर लिया जाए।  आजकल काव्या को बहुत काम रहता है। ऑनलाइन काम करती है  और घर का काम ऊपर से छोटा सा बच्चा। क्या-क्या काम करेगी वह। उन्होंने घर में झाड़ू लगाई और मन ही मन बहू की सुरुचिपूर्ण साज सज्जा की तारीफ़ की। उन्होंने हर सामान को यूँ  छुआ मानो उसे प्यार कर रही हों और उससे अपना नाता जोड़ रही हों।  अम्मा ने झाड़ू लगाई फ़िर सोचा क्यों न पोछा भी लगा लिया जाए । घर के एक कोने में नए जमाने का बढ़िया सा चक्का लगा हुआ एक पोछा स्टैंड रखा हुआ था। अम्मा ने बड़ी आसानी से पोछा लगाया और पोछा लगाते लगाते मन ही मन बहू को तारीफ की कि एक वह जमाना था जब उन्हें बैठकर पूरे घर में पोछा लगाना पड़ता था और अपने घुटनों और कमर के दर्द से असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता था। कुछ भी नया करना चाहती तो सासू मां कहतीं," हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था। नए चोंचले हमारे घर में नहीं होते"। वे मन मसोस कर रह जातीं। उन्होंन