छल
मै इस बार थोड़ा और छली गई खुद से खुद ने छोड़ा हाथ, उम्मीद ने छोड़ा दामन रौशनी ने तोड़ा आंखों का भरोसा, वर्षों ने गलत गिनती बताई, प्रेम ने रोटी के बीच रख दिए कुछ सिक्के, आवाज़ ने भाषा का पुल तोड़ दिया, मै गुलाब में रजनीगंधा खोजती रही, पाषाण ने पानी को कर लिया कैद अपने गर्भ में, पेड़ों के बच्चों ने किलकारी नहीं भरी धरती ने करवट बदली और टिक गई स्त्री की पीठ पर, अब 'छल' स्त्री और स्त्री के बीच 'प्रेम' बन ज़िंदा है.. ©️ Aparna Bajpai Picture credit Google