पगडंडियाँ उदास हैं!
कंटीली झाड़ियाँ उग आयी हैं रिश्तों पर, मौन है हवा... घूंघट वाली ठिठोलियाँ गायब हैं बंसी की उदास धुन और प्रेम की आवारगी; खो गयी हैं शहरी बाजारों में, पायलों की रुनझुन ने बदल लिया रास्ता, हाँथ से हाँथ का स्पर्श बिछड़ गया ....... मंदिर की घंटियां सुन देहरी पर दिए नहीं जलते, पगडंडियाँ उदास हैं! कि.... उन पर लौटने वालों के पदचिन्ह नहीं दिखते. (Image credit google)