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पगडंडियाँ उदास हैं!

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कंटीली झाड़ियाँ उग आयी हैं  रिश्तों पर, मौन है हवा...  घूंघट वाली ठिठोलियाँ गायब हैं बंसी की उदास धुन  और प्रेम की आवारगी; खो गयी हैं शहरी बाजारों में,  पायलों की रुनझुन ने   बदल लिया रास्ता, हाँथ से हाँथ का स्पर्श बिछड़ गया ....... मंदिर की घंटियां सुन  देहरी पर दिए नहीं जलते, पगडंडियाँ उदास हैं! कि.... उन पर लौटने वालों के  पदचिन्ह नहीं दिखते. (Image credit google)  

खलल (तीन कवितायेँ)

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१.  ज़िंदगी से जूझ कर मौत से युद्ध कर  ऐ दुनिया!  इंसान को इंसान से मिला, खलल पैदा कर  इस अनवरत चक्र में, वक्त के पाटों में पिसती इंसानियत  तड़पती है,  रोती है ज़ार-ज़ार, देखती हूँ आजकल.......  आदमी से आदमी गायब है. २. देहरी के भीतर कदम रख  खलल पैदा किया एक स्त्री ने; एक स्त्री के साम्राज्य में, वक्त की सुई घूमती है, रिश्तों के बंध बनते हैं, टूटते हैं कुछ पुराने रिवाज़, बदल जाती है  एक स्त्री की कुर्सी..... कि  समय नए का स्वागत कर रहा है. 3. आवारागर्दी करती हवा  बार बार खलल डालती है  तरतीब से बंधे गेसुओं में, आवारा बादल ले आते है बरसात  खलल पैदा करते हैं  धूप और धारती के मिलन में, जब जब खलल पड़ता है  पाताल की चट्टानों की सेज में  कांपती है धरा जमींदोज हो जाती हैं  बसी बसाई जिंदगियां, बहुत कठिन होता वक्त को थामना,  आखिर शब्द भी  खलल डाल ही देते हैं  रिश्तों में, गर समझ कर न बुना जाय बातों का ताना- बाना. 

प्रेम की तारीख

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आँखों की कोरों में एक सागर अटका था  दहलीज पर टिकी थी लज्जा आँचल खामोश था  थामे था सब्र ..... कि खुद से मिलने की घड़ी बीत न जाय. मौसम में थी बेपनाह मोहब्बत लबों पर जज्बातों की लाली  अलकों में अटका था गुलाबों का स्पर्श  नाचती धरती ने एक ठुमका लगाया वसंत ने ली अंगडाई  और प्रेम  तारीखों में अमर हो गया. (Image credit Google)

शेयरिंग इज केयरिंग

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पार्क की बेंच पर बैठकर  बातें करते हो मुझसे, अपने स्कूल की कहानियाँ सुनाते हो, मै मुस्कुराता हूँ तुम्हारी खुशी पर, ललचाता हूँ तुम्हारे स्कूल की  कहानियों में  शामिल होने के लिए, तुम्हारी चमकती पोशाक  मेरी नीदें चुरा लेती है  तुम्हारी भाषा  मुझे कमतरी का एहसास कराती है, मै दौड़ता हूँ तुम्हारे साथ हर दौड़  पर  जीतते तुम्ही हो, जब अपने पुराने कपड़े देकर  सीखते हो तुम शेयरिंग इज केयरिंग, तब मेरे हिस्से के फल  भरे होते हैं तुम्हारे रेफिजरेटर में, मेरे हिस्से की किताबें  पड़ी होती हैं तुम्हारे घर के कबाड़ में, जब तुम जाते हो स्कूल मेरे घर की रौशनी चमकाती है तुम्हारा भविष्य तुम्हारी स्कूल बस  धुआं भले ही छोड़ती है मेरे ऊपर  फिर भी दूर तक भागता हूँ मै उसके पीछे, रोज रोज तुम्हारे पीछे भागने के बावजूद कभी नहीं पंहुच पाता उस चमकती हुयी दहलीज के भीतर  जंहा मेरे हिस्से की सीट पर  कोई और काबिज है. (Image credit shutterstock)

प्रेम दिवस के नाम

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तुम प्रणय का पुष्प बनाकर बस गए मेरे निलय में, मै निशा की श्वेत चादर बंध गयी तेरी गिरह में. प्रीत की अठखेलियाँ मचलीं तुम्हारे गेह में सिंच गयीं कलियाँ तृषा की  मधु भरे पावन नयन में। है सुबह कुछ खास मंजर भी नवेले वस्त्र में प्रेमियों की रौनकें बिखरीं धरा के वृत्त में इश्क की अनुपम फिजां आज कुछ आज़ाद है उड़ चले परवाज़ देखो डर खुशी के बाद है. मौत से पहले सजा लें मांग अपने स्वप्न से नेह की दुनिया सजा दें  चिर विरह के अंत से. (चित्र साभार गूगल)

प्रेम की उतरन

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अंजुरी में तुम्हारी यादों का दिया जला पढ़ता रहा हमारी अनलिखी किताब. हमारा साथ अंकित था हर पृष्ठ पर, हमारा झगड़ा और वो अनोखी सुलह..... जब तुमने हमारे रिश्ते के लिए बाज़ार की शर्त लगा दी....... और मै! कांपता ही रहा अनोखे डर से. मेरी हंथेली में तुम्हारी रेखा नहीं थी और तुम .... नसीब पर ऐतबार कर रही थी. चाहा था मैंने भी उतना ही जितना तुमने; साथ हमारा खिले सुर्ख गुलाब सा। सूखे गुलाबों की पंखुड़ियां महकती हैं अब भी, उड़ते हैं मोरपंख, गौरैया का घर टंगा है अब भी वंही, स्वप्नों की कतरने सजी हैं दीवारों पर, तुम भी हो, मै भी हूँ, बस हमारा रिश्ता बाज़ार में बिक गया । (Picture credit google )

ख़त

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उजड़े हुए खतों ने आज फिर दस्तक दी,  चाँद शरमाया,  सिमटा,  लरज गया मात्र सरगोशी से  उफ़ान पर थे बादल,  बरसने को बेताब।  हवा ने थामा हाँथ,  ले गयी दूर.....  कहा!   यादों के सिरे थाम कर;  बहकाना गुनाह है.  खतों का क्या,  बिन पता होते हुए भी  पंहुच ही जाते हैं,  प्यार पंहुचा ही देते है प्रिय के पास,  जान शब्दों में नहीं, एहसासों में होती है, और ख़त........   एहसासों का शरीर।  (picture credit google)