प्रेम की उतरन
अंजुरी में तुम्हारी यादों का दिया जला
पढ़ता रहा हमारी अनलिखी किताब.
हमारा साथ अंकित था हर पृष्ठ पर,
हमारा झगड़ा और वो
अनोखी सुलह.....
जब तुमने हमारे रिश्ते के लिए
बाज़ार की शर्त लगा दी.......
और मै!
कांपता ही रहा अनोखे डर से.
मेरी हंथेली में तुम्हारी रेखा नहीं थी
और तुम ....
नसीब पर ऐतबार कर रही थी.
चाहा था मैंने भी उतना ही
जितना तुमने;
साथ हमारा खिले
सुर्ख गुलाब सा।
सूखे गुलाबों की पंखुड़ियां
महकती हैं अब भी,
उड़ते हैं मोरपंख,
गौरैया का घर टंगा है अब भी वंही,
स्वप्नों की कतरने
सजी हैं दीवारों पर,
तुम भी हो,
मै भी हूँ,
बस हमारा रिश्ता
बाज़ार में बिक गया ।
(Picture credit google )
वाहःह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार लोकेश जी
हटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंसादर
अप्रतिम सुंदर।
जवाब देंहटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
सादर आभार मीना जी
हटाएंस्वप्नों की कतरने
जवाब देंहटाएंसजी हैं दीवारों पर,
तुम भी हो,
मै भी हूँ,
बस हमारा रिश्ता
बाज़ार में बिक गया।
आदरणीया अपर्णा जी आपने इन शब्दों को इस कदर पिरोया है कि इनका भाव और अभिव्यक्ति बहुत ही सुंदर है।
आदरणीय सोनू जी , आपकी सराहना के लिए सादर आभार । ब्लॉग पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी ।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ज्योति दी , बहुत बहुत शुक्रिया । मई आपके विविध रंगी लेखन की कायल हूँ। आप हर विषय में महारत रखती हैं । कई बार आपके ब्लॉग पर जाकर राय नहीं दे पाती हूँ पर कोई भी लिंक दिखने पर पढ़ती अवश्य हूँ।
हटाएंआपको सादर नमन।
बहुत सुन्दर ! बशीर बद्र का एक शेर याद आ गया - कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता.'
हटाएंआदरणीय गोपेश जी
हटाएंब्लॉग पर आने और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
आगे भी आपकी प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा है.
सादर
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
सादर
आदरणीय ज्योति जी , ब्लॉग पर आपका स्वागत है । प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार
हटाएंबहुत ही खूबसूरत पंक्तियां
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
हटाएंसादर
संवेदनशील प्रस्तुति... बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंबधाई व शुभकामनाएं ।
सुनील जी सादर धन्यवाद
हटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी , मेरी रचना को पटल पर रखने के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-02-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2873 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आदरणीय दिलबाग जी
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए सादर धन्यवाद ।
वाह्ह...क्या बात है बेहद सुंदर रचना अपर्णा जी।
जवाब देंहटाएंश्वेता जी, हार्दिक आभार
हटाएंसादर
आदरणीय , हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंसुंंदर संवेदनशील रचना..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पम्मी दी
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
स्वप्नों की कतरने
जवाब देंहटाएंसजी हैं दीवारों पर,
तुम भी हो,
मै भी हूँ,
बस हमारा रिश्ता
बाज़ार में बिक गया ।--
विरही मन का वीत राग -- बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना प्रिय अपर्णा ०० सस्नेह --