प्रेम की तारीख



आँखों की कोरों में एक सागर अटका था 
दहलीज पर टिकी थी लज्जा
आँचल खामोश था 
थामे था सब्र ..... कि
खुद से मिलने की घड़ी बीत न जाय.

मौसम में थी बेपनाह मोहब्बत
लबों पर जज्बातों की लाली 
अलकों में अटका था गुलाबों का स्पर्श 
नाचती धरती ने एक ठुमका लगाया
वसंत ने ली अंगडाई 
और प्रेम 
तारीखों में अमर हो गया.

(Image credit Google)

टिप्पणियाँ

  1. वाह्ह्ह.....बहुत खूब👌👌👌
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अपर्णा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है श्वेता जी, बहुत बहुत शुक्रिया ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2881 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने के लिए मैं आपका हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ।
      सादर

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय श्वेता जी , मेरी रचना को मान देने के लिए शुक्रिया।
      सादर

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर रचना अपर्णा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. वसंत ने ली अंगडाई
    और प्रेम
    तारीखों में अमर हो गया.---------

    बहुत खूब प्रिय अपर्णा | बहुत ही प्यारे भाव हैं |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय रेनू दी, आपकी सराहना मन उमंग से भर देती है । सादर आभार

      हटाएं
  7. "आँखों की कोरों में एक सागर अटका था " सच कहूँ तो कविता यही पुरी हो गयी! बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी सच कह रहे हैं आप, कविता वास्तव में वंही पूरी हो गयी, बाकी तो भावभूमि तैयार की गयी है.
      बहुत आभार
      सादर

      हटाएं

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