शेयरिंग इज केयरिंग


पार्क की बेंच पर बैठकर 
बातें करते हो मुझसे,
अपने स्कूल की कहानियाँ सुनाते हो,
मै मुस्कुराता हूँ तुम्हारी खुशी पर,
ललचाता हूँ
तुम्हारे स्कूल की 
कहानियों में 
शामिल होने के लिए,
तुम्हारी चमकती पोशाक 
मेरी नीदें चुरा लेती है 
तुम्हारी भाषा 
मुझे कमतरी का एहसास कराती है,
मै दौड़ता हूँ तुम्हारे साथ हर दौड़ 
पर 
जीतते तुम्ही हो,

जब अपने पुराने कपड़े देकर 
सीखते हो तुम
शेयरिंग इज केयरिंग,
तब मेरे हिस्से के फल 
भरे होते हैं तुम्हारे रेफिजरेटर में,
मेरे हिस्से की किताबें 
पड़ी होती हैं तुम्हारे घर के कबाड़ में,
जब तुम जाते हो स्कूल
मेरे घर की रौशनी
चमकाती है तुम्हारा भविष्य

तुम्हारी स्कूल बस 
धुआं भले ही छोड़ती है मेरे ऊपर 
फिर भी
दूर तक भागता हूँ मै
उसके पीछे,
रोज रोज तुम्हारे पीछे भागने के बावजूद
कभी नहीं पंहुच पाता
उस चमकती हुयी दहलीज के भीतर 
जंहा मेरे हिस्से की सीट पर 
कोई और काबिज है.

(Image credit shutterstock)







टिप्पणियाँ

  1. निस्तब्ध!!!
    एहसासों का प्रतिबिंब!!!!
    कैसे जी लेते हो ऐसे एक एक पल जो अनुभूति है सच की अनुभूति।
    अतुलनीय।
    शुभ दिवस।

    जवाब देंहटाएं
  2. एक शब्द विहीन प्रतिक्रिया
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय अपर्णा -- एक बार फिर आपने म मर्मान्तक सच को शब्दांकित कर अपने लेखन को सार्थक किया है | जीवन के ये कटु सत्य सदा अनदेखे ही रहते हैं | सस्नेह -

    जवाब देंहटाएं
  4. संवेदनशील सत्यता के करीब बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूबसूरत रुप सामने आता हैं,जब इस तरह के दैनिक वार्तालाप में प्रयुक्त शब्द अनुभवों की भाषा में लिपट कर सामने आते हैं...! हमेशा की तरह बेहतरीन लिखा।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 13 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. एक कटु सत्य का सुन्दर शब्दांकन...
    वाह!!!
    बहुत लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं

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