संदेश

अगस्त, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कविता की रेसिपी

जब कहने को हो बहुत कुछ तो कहो एक कविता! निकाल दो अपनी सारी भड़ास, सारे दुःख, तकलीफ़  जाहिर कर दो संसार के सामने, बिना व्यक्तिगत हुए, दोषारोपण करो वर्ग विशेष पर, आंसुओं की बहाओ गंगा यमुना, तहज़ीब की चादर तले लिखो अनछुए एहसास, प्रेम और रोमांच के अनुभव, कोई नहीं आएगा टोकने , रोकने या तुम्हें  खड़ा करने  कटघरे के अंदर, तुम्हारे शब्दों की छांव में, छुप जाएगा सारा जहां, अपने -अपने ज़ख़्म छिपाये हुए लोग मरहम की आस में आएंगे निकट, तुम्हारी कविता में खोज लेंगे  अपने-अपने प्रेम, अपनी आदतें, अपने रोष! कविता तब कविता नहीं होगी, होगी मानव मन का आख्यान, न कम न ज़्यादा बस संतुलित रखना कविता के सारे इंग्रीडिएंट्स... संतुष्टि की रेसपी के लिए. ©Aparna Bajpai

अज़नबी

मैंने उसको देखा उसने मुझे, आंखों ने दर्द की भाषा समझी, खुल गईं कुछ मुट्ठियाँ जेब के भीतर, खुले दिल,  हमने अपनी अपनी गठरियाँ सरका दीं एक दूसरे के सिरों पर, होता रहा वार्तालाप मूक अजनबी थे दोनो ही, मुक्ति की समाधि में उतरते हुए दोनो की मुट्ठियाँ गुंथी थी.. ©Aparna Bajpai

पानी का बुलबुला

मूंद लो आंख कि हर आंख ज़ख़्मी है, हवाओं में तैर रहे हैं हिंसक छुरे, शब्दों की पूंछ में लगे हैं पलीते, हर हाँथ के झुनझुने में सुलगते शब्द; नाप रहे हैं धरती आसमान, डरना गुनाह है, डराना मज़हब, सूखे ठूंठ की फुनगियों पर मरा पड़ा है ब्रह्मांड, आदमी की औकात बंद हो चुकी मुद्रा भर है, पानी का बुलबुला है भी और नहीं भी. ©अपर्णा बाजपेयी