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एक ख़ास दिन

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खुशियों के साथ बिताया एक पूरा दिन  जी हां बच्चे खुशियों का वह समंदर होते हैं कि उनके पास जाते ही आंनद की धारा आपके पास दौड़ी चली आती है ।आप चाहे तो उनके साथ पूरा जीवन बिता सकते हैं। मैं अपने काम के दौरान गांव में जाती हूं। लोगों से मिलती हूं ।बच्चों के साथ समय बताती हूं और उस दौरान ऐसा लगता है जैसे मेरे जीवन में कहीं कोई दुख, कोई कष्ट कुछ भी नहीं है या जीवन इतना सुखद लगता है कि भगवान को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे ऐसे मौके दिए जब मैं उन लोगों से मिल पाती हूं जिन लोगों को मेरी जरूरत है। जिन्हें वास्तव में सुने जाने की जरूरत है। जिन्हें कहना नहीं आता कि वास्तव में वे चाहते क्या हैं। जो बहुत थोड़े में संतुष्ट हैं। जिनके लिए आलीशान घर, बड़ी गाड़ी यह कोई बहुत बड़ी ख्वाहिशें नहीं हैं। जो पेट भर भोजन, सिर पर छत और मौसम के हिसाब से सही कपड़े मिल जाने से संतुष्ट हैं। जो चाहते हैं कि उनके बच्चों को शिक्षा मिले भले ही वे न पढ़ पाए हों। जो चाहते हैं कि उनके बच्चों को रोजगार मिले ।उनके बच्चों को पैसों के लिए मोहताज ना होना पड़े। उनके बच्चों को समय पर जरूरत पड़ने पर चिकित्सा मिले । वे सारी सुव

जीवन दीप

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जिन्हे दीवाली पसंद थी ; उन्होंने रंगो को उजाला समझा, मुस्कानों को फुलझडियां, बेटियों को लक्ष्मी, किताबों को सरस्वती, पुत्रों को संपदा पुत्र वधुओं को समृद्धि,  और स्वयं को समझा कुम्हार! बना ही लेगा जीवन को दीप सा ऊर्जा से भर देगा धरती, आकाश, दीप्त करेगा संसार, चाक पर घूमता जी लेगा जीवन।

दीवाली पूजा विधि

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दिवाली का पर्व पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है । यह 5 दिनों का पर्व होता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, अमावस्या को दीपावली, अमावस्या के बाद प्रथमा तिथि को होती है गोवर्धन पूजा और उसके बाद भाई दूज। यह पांच त्योहारों का संगम है और 5 दिनों के बाद बिहार और उससे जुड़े हुए लोगों में शुरू हो जाती है छठ पूजा की तैयारी। दोस्तों दीपावली के पहले घरों में साफ-सफाई और एक-एक सामान को बहुत अच्छे से शुद्धता के साथ रखने का कार्य हर घर में किया जाता है। दोस्तों आज हम बात करेंगे कि दीपावली के पूजन में हमें किन किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए और इसकी पूजा की पारंपरिक विधि क्या है । अगर हम सक्षम हैं और विधि विधान से पूजा करते हैं तो हमें उसका फल जरूर मिलता है ऐसा हमारे शास्त्रों में वर्णित है. Picture credit Google दिवाली का त्यौहार हर व्यक्ति, हर परिवार और हर समाज के लिए खुशहाली का पर्व है. इस दिन धन की देवी महालक्ष्मी का पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजन किया जाता है. महालक्ष्मी के पूजन से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुख और आनंद की प्राप्ति होती है. दीपावली के दिन सर्वप्रथम घर की अच्छी प्रकार

चंद्रहार या चांद बालियां

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आसमान से झाँक रहे हो तुम क्या जानो मामाजी दुनिया कितनी बदल गई है  नई हवा से लो कुछ सीख । Image credit shuterstock  धरती तेरी बहना है जब  मिलने क्यों न आते हो , चंदा तारे घर ले आऊं  मन को क्यों भरमाते हो । एक तरफ़ हैं रजत रश्मियां  एक ओर सुन्दर मुखड़ा, मेरी दुल्हन मांग रही है  तुझ सा कुछ उपहार बड़ा । मैं भी ढूँढ रहा हूँ कब से  चाँद सरीखा हार कोई।  चंद्र हार या चांद बालियां  साड़ी पर चांदी की बेल, पत्नी के हाथों रख पाऊँ  ऐसा कुछ तू कर दे खेल। भरी टोकरी सपनों वाली, ख़ाली क्यों अपनी है जेब  नीचे आओ तो जानोगे  मुस्कानें सब कितनी fake । अम्मा झूठ बोलती हैं  कि चंदा मेरा भाई है, नहीं जानती रिश्ते-नाते  के न कोई मानी हैं। समय नहीं है,काम बहुत है  मिलने की न बात करो  चंदा को तुम friend बना लो  Facebook पर add करो  जब जब मिलने का मन होवे  प्रोफाइल पर visit करो, बात करने की इच्छा हो तो  मैसेंजर पर Hello करो।   Notification देख के चंदा  तुम तक खुद आ जाएगा, रिश्ते नाते सब सच्चे हैं इसका भरम निभाएगा। ।

बिकाऊ लोग

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 वे घुलते रहे  हम कहकहे लगाते रहे,  Image credit to freepic वे गिरे  हमें हंसी आई , वे भूख से बिलबिला रहे थे  हम भरे पेट डकार रहे थे, उन्होंने एक कहानी कही ;रोटी की  हमने विकास का राग अलापा, दुनिया ने सुना हमारा राग  हमने बंद कर दिए सबके मुँह लालच ठूंस कर  वे हमारी आवाज़ के इंतज़ार में हैं  और हम बढ़ने वाले बैंक बैलेन्स के। । #मीडिया 

आदिवासियों के घर और रहन- सहन

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  आइए देखते है किस प्रकार तैयार करते हैं #झारखंड   के  #आदिवासी समुदायों के लोग अपने घरों को। प्राकृतिक तरीके और साम्रगी से तैयार की जाती है #WallPutty aur #walldecor के लिए इस्तेमाल किए जाते है #chamicalfreecolours #environmentfriendly , #womenemployment, दिवाली की तैयारियों में आप भी ग्रामीण महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं इन्हें अपने घरों के रंग रोगन और साज सज्जा में शामिल कर सकते हैं। इसी बहाने दूसरों के घर भी रौशन हो जाएंगे। 

चाहती हूँ लौट जाना

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बिन पानी की बूंद

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  Image credit pexel  बिखरती हुई औरतें समेटी नहीं जाती  फिसल जाती हैं रेत की मानिंद  दिखाई नहीं पड़ती तुमसे दूर होती हुई  दर्द में लिपटी हुई औरतें खुशी का नकाब लगा मिलती हैं,  तुम्हें दिखता है अधूरा सच, बारिश की बूँदों में तुम सिर्फ़ पानी देखते हो,  उन बूँदों का क्या जिनमें पानी नहीँ होता!

तुम्हारी हथेलियों की हिना

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एक बेटी की इच्छा

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  Image credit Dreamstime  चाहती हूं लौट जाना  मां की कोख में,  फ़िर एक बार , धरती पर आने का इंतज़ार करना चाहती हूं,  नौ माह देखना चाहती हूं पिता को मां के पेट पर हांथ फेरते हुए,  आंखों में लिए असीम प्रेम, माधुर्य के दिनों का एहसास,  मेरा आना हो सकता है चमत्कार,  टूटते रिश्तों में मधु बन उतर जाना चाहती हूं,   ग़र घूंट घूंट पिया जाय प्रेम,  तो जिंदगी भर ख़त्म न हो,  तलाक के काग़ज़ शायद उड़ जाएं खिड़की से बाहर,  जैसे फेंक दी जाती हैं अनचाही चीजें कबाड़ के साथ,  मां और पिता फ़िर साथ बैठ सपनों में खो जाएं  और मैं  उनके प्रेम की साक्षी बन स्थिर हो जाऊँ उन दीवारों की जगह। ।

लखनऊ

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  Image credit pinterest  तुम्हारी हथेलियों की हिना में मेरा नाम कुछ यूं खोया  मानो लखनऊ की भूल भुलैया में नीचे उतरना है कि ऊपर चढ़ना है समझ ना आया  मैं इमामबाड़े सा अपने आप को अकेला पाता रहा , तो कभी रूमी गेट के उस पार बड़ी देर तुम्हारे इंतजार में खड़ा रहा  तुम नीबू पार्क की दहलीज पर कुछ यूं मुस्कुराए मानो गोमती का किनारा तुम तक चल कर आ रहा हो और कहता हो कि मुझ में तुम यूं बसे हो जैसे बसी है तहज़ीब लखनऊ में। ।

प्रेम के सफर पर

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Image credit pinterest चलो एक सीढ़ी चढ़ें लंबी वाली; पकड़ एक दूसरे के हांथ, आसमान से झांकते चांद को छूने का भ्रम पालें, जैसे दोनो हाथों के बीच पकड़ लेते हैं 'ताजमहल' तस्वीर में,  आओ न, सहलायें  पत्तियों की पीठ,  गुलाब के कान में कहें अपनी बात , नदी के गीत पर मचलने दें घुँघरूओ को, कहें अलविदा जाते हुए लोगों को, रोका नहीं जा सकता जिन्हें,  प्रेम से ज्यादा प्रेम के किस्से कहे जाते हैं,   जैसे चाँद उतरता है आधी रात,  खण्डहर में घूमती आत्मा के पास , हम भी उतर आयेंगे जीवन की सतह पर  रोमांचक सफर से लौटना ही होता है  कहीँ न कहीँ ।। ©️अपर्णा बाजपेई 

पहली शिक्षिका

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 यह शिक्षक दिवस हमारी पहली शिक्षिका के नाम जिसने हमे सांस लेना सिखाया जिसने जीवन जीना सिखाया इस वीडियो पर अपने कमेंट जरुर दें 

यादें, जो भूलती नहीं

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  यादें 1 जब कभी उग आते हैं  यादों में गुलाब,  अंधेरी रातों में जुगनुओं की तरह चमकता है वक़्त,   आंखों  की कोरों पर उतर आती है ख़ामोशी , धड़कता है कुछ अनायास,  जैसे टूट गया हो कोई तार  वाद्य की साँझ के निकट। । यादें 2 तुम्हारा लौटना मोहता है,  जाना थोड़ा कठिन; कितने आवेग होंठों पर ठहर जाते,  मानों लौट कर कोई नजर  छुप गई दिल के भीतर,   इस बार फूलों के नीचे सोते हुए तुम्हारा आना तिरंगे की चादर लपेटे  ऐसा भी कोई करता है भला! अधूरी राह में हांथ छोड़  बढ़ जाना किसी और दिशा।  Image credit Google  यादें 3 मन्द हुईं साँसों से पूछ लूँ एकबार   क्यों टूट गई सजधज,  तुम्हारी चौखट पर  अंतिम बार पंहुच  जला हुआ हांथ देखा; खोजा उन उँगलियों को  जिन्होंने बांधे थे कलाई पर रक्षा के धागे, देर हुई इसबार  टूट गई आशा  माफ़ मत करना बहन !!  ©️Aparna Bajpai

चंदू की चाची की चटनी

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चंदू की चाची जाने कब से चटनी पीस-पीस कर चाचा को चटा रही हैं, और चाचा चटनी चाट चाट कर बीमार नहीं पड़े, यह चांदनी रात का कमाल है या चांदी के चम्मच का! इस सवाल का जवाब देने वाले को एक कटोरी चटनी फ्री 

इश्क हकीम

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  इश्क हकीम  PC Google  उसने कहा, तुमसे मिलकर जिंदगी गुड़ गोबर हो गई ,  मैंने सोचा गुड़ तो ठीक है लेकिन गोबर!  मैने कहा, बात कुछ हजम नहीं हुई, वह बोला, अजवाइन फांक लो हजम हो जायेगी, वह प्रेम को पचाने के नुस्खे बताता रहा, और मैं उस हकीम को आदमी बनाने की तरकीबें खोजती रही।। ©️ Aparna Bajpai

भुट्टे का सुख (कविता)

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PC Naresh Agrawal's FB wall भुट्टे का सुख वही जानता है  जो जानता है बारिश की बूँदों का माधुर्य,  बीच राह चलते हुए जो पकड़ लेता है प्रेमिका का हांथ, नन्हें बच्चे की हंसी जिसके कानों में गूंजती है देर तलक , वह जो अभी-अभी कहकर आया है विदा; अपने अंतिम प्रेम से,  जिसके सिरहाने मां की बिंदी का पत्ता रखा है, जो जानता है खेत की मेड़ काटकर पानी लगाने का सुख,   जिसने भोर के तारे के इंतजार में काटी है  रात,  सड़क के किनारे भुन रहे भुट्टे के साथ दौड़ पड़ती हैं कुछ स्मृतियां,  माटी की महक,  रोटी बनाते हुए उँगलियों का जलना, अम्मा के आंचल में पोछ लेना मुँह,  भुट्टे के हर दाने के साथ महसूसता है जो आधा-आधा बांटने का सुख , वही बचाए रख पाता है पाषाण होते समय में अंजुरी भर पानी, जैसे बची रहती है भुने हुए दाने में असली मिठास। । ©️Aparna Bajpai

15अगस्त कविता

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आज़ादी के इस पावन पर्व पर आप सब को शुभकामनाएं  पंद्रह अगस्त , पंद्रह अगस्त पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त वो राजगुरु,  वो भगत सिंह बिस्मिल हों या अशफ़ाक उल्ला आज़ाद,  बोस  गांधी जी की कुर्बानी नहीँ गई व्यर्थ। रच रहे आज हम नव भारत दुनिया में परचम लहराए आज़ादी के मतवालो की सीखो पर चलकर दिखलायें। यह पर्व नहीं कोई घटना झंडा फहराया,  भूल गए इसकी कीमत नव पीढ़ी को है जिम्मेदारी बतलायें, जब हर गरीब,  हर दुःखी व्यक्ति पूरी कर पाए हर इच्छा , आजाद देश का हर प्राणी एक-दूजे का सम्मान करे न धर्म जाति,  न रंग भाषा न कोई इनमें भेद करे ऐसा हो अपना देश आज हर नर नारी खुशहाल रहे पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त यह देश सदा आबाद रहे ।2।। ©️Aparna Bajpai

आज़ादी के अमृत महोत्सव पर कविता

 पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त  पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त  अंग्रेज सूर्य जब हुआ अस्त  हर भारतवासी हुआ मस्त पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त     खुशियों की तब रौनक आई,   खेतों में हरियाली  छाई, हर घर में तब उल्लास हुआ,  सपनों का दिन आबाद हुआ,  फिर कलम चली आज़ादी से , बेड़ियाँ बोल पर टूट गई , न कोई कैद रही मन पर , शाशन से कोइ न रहा त्रस्त,  पंद्रह अगस्त , पंद्रह अगस्त  पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त । वो राजगुरु,  वो भगत सिंह,  बिस्मिल हों या अशफ़ाक उल्ला,  आज़ाद,  बोस,  गांधी जी की,  कुर्बानी नहीँ गई व्यर्थ, पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त  पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त । रच रहे आज हम नव भारत,  दुनिया में परचम लहराए,  आज़ादी के मतवालो की,  सीखो पर चलकर दिखलायें।  यह पर्व नहीं कोई घटना,  झंडा फहराया,  भूल गए,  इसकी कीमत नव पीढ़ी को  है जिम्मेदारी बतलायें,  जब हर गरीब,  हर दुःखी व्यक्ति  पूरी कर पाए हर इच्छा , आजाद देश का हर प्राणी  एक-दूजे का सम्मान करे,  न धर्म जाति,  न रंग भाषा   न कोई इनमें भेद करे,  ऐसा हो अपना देश आज , हर नर नारी खुशहाल रहे  पंद्रह अगस्त,  पंद्रह अगस्त  यह देश सदा आबाद रहे ।2।।

विश्व आदिवासी दिवस 2022

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  (9 अगस्त) आज हम मना रहे हैं 'विश्व आदिवासी दिवस '  आप भी हमारे साथ मनाएं और जानें उनके बारे में जो आधुनिकता के साथ  सामंजस्यपूर्ण तरीके से अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।  इस दिन के लिए कुछ पंक्तियां    जिनके घरों में नहीँ लगते हैं ताले,  जिनके दिलों पर पहरा नहीँ होता  खुले बदन भी जो कर लेते हैं इज्जत की रखवाली  उन लोगों को जंगलों पर शासन मुबारक हो।  पत्ते -पत्ते में जानते हैं फर्क़,  हर कुंए,  तालाब,  नदी,  पोखर के पानी को  पूजते हैं  हर दाने को इश्वर का आशीष समझ लगाते हैं भोग,  उन मानवों को ज़मीन का हर टुकड़ा मुबारक हो।  'विश्व आदिवासी दिवस' पर आप सभी को शुभकामनायें

पढ़ाई में कैसे लायें एकाग्रता

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 कई बार  बच्चे पढ़ाई करना चाहते हैं लेकिन पाठ्यक्रम की पुस्तकें खोलते ही उन्हें नींद आने लगती है।  पढ़ाई बोरिंग लगती है, वे ध्यान लगाकर पढ़ नहीँ पाते या जो भी पढ़ते हैं वह भूल जाते हैं।  इस वीडियो में हम बात कर रहे हैं उन तरीकों की जिन्हें अपनाकर छात्र पढ़ाई को आसान बना सकते हैं। आइए चर्चा करते हैं कुछ जरूरी बिन्दुओं  पर  जैसे पढ़ाई के नोट्स कैसे बनाएं,  खुद को विषय के साथ कैसे जोड़ें  और पढ़ाई उबाऊ लगने लगे तो क्या करें ? इत्यादि 

आज़ादी का अमृत महोत्सव: कुछ ध्यान रखने वाली बातें

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 आजादी के अमृत महोत्सव पर हमारे देश में हर घर तिरंगा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके लिए सरकार और सरकारी कर्मचारी अपने पूरे जोश और लगन से काम कर रहे हैं और हर घर में तिरंगा उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं।   दोस्तों यह बहुत अच्छी बात है कि हम अपने आज़ादी के पर्व को इतने गौरवपूर्ण तरीके से मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ताकि हर परिवार यह समझे कि वास्तव में आज़ादी का मतलब क्या है।  Image credit shuterstock  हम आजादी के अमृत महोत्सव पर इन 75 सालों में पलट कर देखते हैं  तो पाते हैं कि हमने भले ही बहुत कुछ न अर्जित किया हो लेकिन इतना तो अर्जित किया ही है कि उस पर गर्व कर सकें। चाहे पोखरण में परमाणु बम का परीक्षण हो या फिर अंतरिक्ष अभियान में आगे बढ़ना। कोरोना महामारी के दौरान दुनिया के देशों को सहयोग पहुंचाना हो या फिर आगे बढ़कर छोटे देशों को अपने अर्थव्यवस्था के माध्यम से मदद करने का काम हो। भारत ने एक से एक अच्छे काम किए हैं आज जिन कामों पर हम गर्व कर सकते हैं। आज भारत एक सशक्त देश के रूप में आगे बढ़ रहा है और हमारी सरकार को,  हमारे प्रधानमंत्री की लोग प्रशंसा करते हैं। दुनिया भर में भारती

हिन्दी पहेलियाँ (उत्तर)

पिछली पोस्ट में दी गई पहेलियों के उत्तर  1- मूली, 2- झाड़ू, 3- मोबाइल, 4- पंखा, 5- रोटी, 6-Facebook  क्या आपको पहेलियाँ अच्छी लगीं, अगर हाँ तो हम और भी गतिविधियां लेकर आयेंगे।   कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें। 

हिंदी पहेलियाँ

पहेलियाँ (उत्तर अगली पोस्ट में) Comments में उत्तर बताएं 

माउंटेन मैन' दशरथ मांझी (कविता)

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प्रेम में पहाड़ खोदते हुए कितनी ही नदियां बही होंगी स्वेद की, धरती माँ के आंचल पर, टपका ही होगा लहू उंगलियों से, या फट गई होंगी बिवाइयां; प्रियतमा के रुनझुन पांवों का स्वप्न देखते हुए, प्रेम के नाम पर विकास की इबारत लिखते हुए, तुमने कहा था! प्रेम राह बनाता है.., मिटाता नहीं Image credit google ओ पहाड़ पुरुष, शिलाओं सा धैर्य धारण कर,  तुमने ही जिया प्रेम का सच्चा अर्थ,  बेहाल पथिकों के पांवों पर;  अपने पसीने का मरहम लगाने   तुम्हारे हाथों ने थामी थी कुदाल, गर्भ धारित स्त्रियों की व्यथा को महसूस  तुमने जो राह बनाई, आज बच्चे उसी राह पर फुदकते हुए कहते हैं,  ओ मांझी काका! तुम होते तो हम तुम्हारा मस्तक चूमते और कहते! हम भी बनेंगे 'माउंटेन मैन'

पेंटिंग (धारावाहिक कहानी) भाग 3 अंतिम भाग

आरोही पाकिस्तानी मां और ब्रिटिश पिता की बेटी थी जोकि अमेरिका में बेबाक जीवन जीती थी।  साहिल के साथ वह एक ही कंपनी में काम करती थी।  धीरे-धीरे साहिल और आरोही में नजदीकियां बढ़ने लगी थी। साहिल  की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं था जो यह दावा करता कि वह आरोही से प्यार करता है लेकिन आरोही  साहिल की तरफ़ आकर्षित थी और कोशिश करती थी कि साहिल भी उसे उतनी ही तवज्जो दे जितनी वह दे रही हैं।   आरोही की पाकिस्तानी मां कुछ ऐसे कामों में लिप्त थी जो कानूनी रूप से सही नहीं थे। आरोही नहीं चाहती थी कि उसकी मां के बारे में किसी को पता चले या उसके घर में किस तरह के काम होते हैं या किस तरह का माहौल है साहिल जान पाए। धीरे-धीरे आरोही और साहिल नजदीक आ गए थे। भले ही मन के स्तर पर उनके बीच बहुत ज्यादा नजदीकी न हो पाई हो लेकिन शारीरिक तौर पर नजदीक थे। मधुलिका धीरे-धीरे साहिल के दिलो दिमाग से गायब हो रही थी लेकिन फिर भी कुछ ऐसा था कि हर रात सोने के पहले एक बार मधुलिका का चेहरा साहिल की नजरों के सामने से घूम जाता था। वह हमेशा चाहता था कि मधुलिका ही उसके साथ , उसके जीवन में उसके पास रहे ।   एक दिन साहिल और आरोही अपने घर म

भावनाओं का बाज़ार (कविता)

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बिकता है आदमी,    मुर्दा भी! अगर हो कामयाब या चहेता; बस बेचने वाला हो तेज  पकड़ रखता हो बाज़ार की नब्ज़ पर,  फैन काट लेते हैं नस तक,  फ़िर टी शर्ट क्या चीज़ है, ऊपर से छूट भी! अपने हीरो को अपने पास रखने के लिए खरीद ही लेंगे, इंसानियत की औकात ही क्या है?? #Bycotflipcart , #sushantsinghrajput , 

मेरी नज़र में कहानी 'नेताजी का चश्मा '

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नेता जी का चश्मा 'स्वयं प्रकाश' जी की एक कहानी है 'नेता जी का चश्मा'। यह कहानी पाठ्यक्रम में शामिल है और देशभक्ति की भावना को बल प्रदान करती बेहतरीन कहानी है।   कहानी में कैप्टन का चरित्र लोगों को एक साथ कई संदेश देता है। जब पाना वाला कहता है  “वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी इशारा करती है उस ओछी मानसिकता की ओर जो दिव्यांगों को हीन समझती है।  कैप्टन एक बूढ़ा कमजोर आदमी है जो चश्मे बेचता है। वह जब भी सुभाष चंद्र बोस जी की मूर्ति पर चश्मा गायब देखता है तो  जो भी खाली फ्रेम उसके पास होता है उसे लगा देता है।  कैप्टन की नजर में मूर्ति पर चश्मा ना होना एक अधूरापन है और यह अधूरापन इंगित करता है उस नजरिए की ओर जो यह कहता है कि अगर हमारा चश्मा ठीक है, हमारी नजर ठीक है तो हम सब कुछ ठीक-ठाक देख सकते हैं। Image credit Dreamstime  दोस्तों स्वयं प्रकाश जी की एक कहानी कई तरीके से देखी जा सकती है। पुरानी समीक्षा पढ़ने के बाद लगता है कि देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित करने के लिए स्वयं प्रकाश जी ने कैप्टन का चरित्र रचा है  लेकिन वहीं पर

पेंटिंग का राज (धारावाहिक कहानी) भाग 2

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मधुलिका को आज नींद नहीं आ रही थी। सारी रात करवटें बदलते- बदलते बीती।  मधुलिका ने कई बार सोचा कि क्यों ना उठकर अदनान के पास जाएं और उससे बात करने की कोशिश करें। लेकिन ऐसा संभव नहीं था एक अनजान आदमी के पास रात में जाना और उससे बात करने की कोशिश करना अपने आप में ही बहुत शर्मिंदा करने वाला विचार था। अगले दिन सुबह नास्ता करते हुए मधुलिका ने देखा कि अदनान साइड वाले टेबल पर अकेले ही बैठकर ब्रेकफास्ट कर रहा है।  पिछले दिन की बातचीत से दोनों के बीच एक बार मुस्कुराहट का आदान-प्रदान हुआ। मधुलिका ने भी अपनी प्लेट लेकर उसी के साथ बैठकर नाश्ता करने के बारे में सोचा। तब तक अदनान ने खुद उसे अपने पास बुलाते हुए कहा कि, " आप हमारे साथ बैठकर नास्ता कर सकती हैं।  हम इतना तो एक दूसरे को जानते ही हैं"। अदनान और मधुलिका दोनों एक ही टेबल पर बैठ कर बात कर रहे थे और खा रहे थे।   Image credit shuterstock अदनान बड़े इत्मीनान से खाने का मज़ा  ले  रहा था और बहुत धीरे-धीरे खा रहा था। उसको खाते हुए देखकर लग रहा था जैसे साहिल उसके सामने बैठा हो।  पहले तो वह उसे टोक देती थी और कहती थी " साहिल,  इतनी धीरे

पेंटिंग का राज़ ( धारावाहिक कहानी ) भाग 1

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  वे दोनों अलग अलग शहरों में थे . जहाँ ज़िंदगी इतनी बेतरतीबी से बीत रही थी कि उम्हें अपनी सांसों का भी इल्म न था . समय हवा के हिंडोले पर सवार था और ज़िंदगी रसहीन झोंके ले रही थी. मधूलिका उम्र के साथ और निखर रही थी . घर के लोग चाहते थे की जल्द से जल्द वह अपना घर बसा ले और माता पिता को अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति दे . लेकिन सवाल सिर्फ शादी का नहीं था वे चाहते थे की मधूलिका खुश भी रहे . लेकिन किसी अनजान आदमी के साथ सात फेरे ले लेने से खुशियों की गारंटी तो नहीं मिल जाती . वह जब भी आँखें बंद करती तो उस सख्स का चेहरा उसकी नज़रों के सामने आ जाता जिसने कभी शादी का वायदा नहीं किया था. न ही कोई कस्में वादे हुए थे उनके बीच. वे तो सर्फ साथ-साथ रहना कहते थे ताकि अपनी खुशियाँ – अपने गम बाँट सकें. साहिल मधुलिका से बहुत दूर था सात समंदर पार. दोनों के बीच कोइ राब्ता नहीं था सिर्फ पिछली यादों के सिवा. एक दिन सुबह के यही कोइ तीन बजे होंगे कि   साहिल के मोबाइल पर एक मैसेज आया. क्या तुम अब भी न्यूयार्क में हो ? न पूछने वाले का नाम परिचय . सुबह जब साहिल ने मैसेज देखा तो न जाने क्यूं सबसे पहले उसके दिमाग मे