मंदिर में महिलाएं
अधजगी नींद सी कुछ बेचैन हैं तुम्हारी आंखें, आज काजल कुछ उदास है थकान सी पसरी है होंठों के बीच हंसी से दूर छिटक गई है खनक, आओ न, अपनी देह पर उभर आए ये बादल, सृजन की शक्ति के सार्थक चिन्हों का स्वागत करो, पांवों में दर्द की सिहरन को उतार दो कुछ क्षण , राधे! आज मंदिर की शीतल सिला पर सुकून की सांस लो, सृष्टि की अनुगामिनी हो, लाज का नहीं, गर्व का कारण है ये, रजस्वला हो, लोक-निर्माण की सहगामिनी! मेरी सहचर! स्त्री के रज से अपवित्र नही होता मैं, मंदिर और संसार फ़िर.. ये डर..क्यों? कृष्ण ने राधा से कहा. #AparnaBajpai