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मृत्यु के बाद एक पल

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  उसने लरजते हुए हांथों से मेरी ओर एक लिफ़ाफा बढ़ाया उस वक्त उसकी आंखों में वह नहीं थी, मैने सोचा, क्या ही हो सकता है!  उस पल,  जब होंठों पर बर्फ़ की सिल्ली रख जाय, कहीं कुछ ऐसा तो नहीं; जो वापसी का दरवाज़ा खोल दे. उधार की आंखों से मैने उसे कांपते हुए देखा लिफाफा मेरी उंगलियों से टकरा चुका था, खुद पर नंगा होने की हद तक बेशर्मी डालने की कोशिश कर  लिफ़ाफा खोलते हुए  मैने देखे; सिर के कटे हुए कुछ बाल  उसके बच्चे के, उस पल बर्फ फिर बरसी आसमां से नहीं आंखों से  ।। PC Wikipedia  @मानव कौल की बातचीत सुनते हुए 

वैलेंटाइन डे पर कविता

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  फरवरी प्रेम का महीना है और वेलेंटाइन डे के पहले वाले डे बीत चुके हैं।  14 फरवरी को वेलेंटाइन डे है और इस दिन प्रेम का इजहार भी होता है और इकरार भी। लेकिन कई बार चीज़े सही नहीं होती और किशोरावस्था से युवावस्था की देहरी पर कदम रखते युवा सच्चे प्रेम को नही समझ पाते।  उन युवाओ को ध्यान में रखते हुए लिखी गई एक कविता सुनें मेरे चैनल पर  फरेबी इश्क़ का माह आ गया है  बच के रहना ल़डकियों इम्तहान आ गया है  Aparna Bajpai  Copyright reserved 

भारत में भाषाएँ सीखने का महौल: एक साक्षात्कार

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भारत जैसे विविध भाषाई देश में भाषाएं सीखने का माहौल बनाना बेहद जरूरी है।   जब हम उत्तर से दक्षिण या दक्षिण से उत्तर, पूरब से पश्चिम या पश्चिम से पूरब की ओर यात्राएं करते हैं तो अपने ही देश में कई बार हमें भाषाएं न जानने से अलग-अलग तरह के अनुभव होते हैं। कभी अच्छे अनुभव तो कभी ऐसे अनुभव जो हमें  एहसास कराते है कि हम भाषाएं सीखने के प्रति इतने पीछे क्यों है! बच्चों के लिए सीखने सिखाने का माहौल बनाना बेहद जरूरी है । हम जिस प्रकार का माहौल अपने बच्चों को देते हैं बच्चे उसी प्रकार सीख कर आगे बढ़ते हैं ।अगर हम अपने बच्चों को एक ऐसा माहौल देंगे जहां पर वह उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम की भाषाओं को सीख सके और भाषाएं सीखने के प्रति उनके अंदर रुचि जागृत हो सके तो यह उनके बचपन को सही दिशा देना होगा । इन्हीं सारे विषयों पर हमने बात की है रंगराज अयंगर जी से जिन्होंने हिंदी भाषा के प्रति अपने लगाव को दर्शाया है और हिंदी भाषा से संबंधित उनकी सात किताबें भी प्रकाशित हुई हैं आइए सुनते हैं उनसे बातचीत का पहला अंश----- Iyangar जी की किताबे मंगाने के लिए आप इस पते पर संपर्क करें  M. R. Iyengar.               

चुड़ैल (कविता)

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मेरे गांव में उतरा करते हैं प्रेत, जवान लड़कियों की दाग दी जाती है ज़बान, मिर्चा और सरसों का धुँआ प्रेत भगाने का अचूक हथियार है, औरतों के ही शरीर में पैठती है चुड़ैल, बन्द किवाड़ों के भीतर चुड़ैल भगाता है गांव का ओझा, औरतों की पीठ जलते कोयले को बर्फ़ में बदल देती है, जूड़े में पलाश की आग जलाकर लड़कियां प्रेत को बांध लेती हैं अपनी गांठ में, महुआ की गंध चुड़ैल का इत्र बन जाती है औरतें रज में बहा देती हैं ओझा का तंत्र, सरसों और मिर्च को चटकार जाती हैं नन्ही अमियों के साथ,  गोल दुनिया को दरवाज़े पर लटका;  औरतें चुड़ैलों के साथ खेल लेती हैं  अक्कड- बक्कड़। ©️अपर्णा बाजपेयी