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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जरूरत

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  किसानों का पसीना, स्त्रियों की उदासी और बच्चों के आंसू, आज का सबसे बड़ा सच हैं; और भूख, दुनिया का नवीनतम समाचार! एक ख़बर जो कभी पुरानी नहीं पड़ती. जैसे नहीं सूखती है बुजुर्गों के हाथों से आशीष की गंगा, दर्द किसी पहाड़ के सिरे पर टिका रहता है। सड़कों पर पड़े जानवरों की लाशें, सबूत हैं हमारी नष्ट होती मनुष्यता का, और दुनिया को मुट्ठी में कैद करने वाली डिवाइस, रिश्तों के रस को सुखाने का सबसे बड़ा हथियार... हंसती हुई स्त्रियां इस समय की सबसे बड़ी जरूरत हैं और : बच्चियों को मां की नज़र से देखने वाले मर्द आज के आराध्य देव... ©️ अपर्णा बाजपेई

परदेश

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 पानी संग निचुर जाती हैं आंखें सूर्य को अर्घ्य देती मां, मांगती है सलामती की दुआ, सुखी रहे लाल, घर परिवार, भरा रहें अंचरा, सुहागन बनी रहे पतोहु, बिटिया बसी रहे ससुराल,  और का मांगी छठी मैया! हर साल भर दियो अंगना! विदेश गए लाल की आंख, टिकी है चमचमाती स्क्रीन पर नदी , घाट, छठ, माई, दौरा  ठेकुआ , केरा और का... दो बूंद आंसू टपक जाते हैं स्क्रीन पर अब अर्घ्य पूरा हो गया... बिछोह और छठ मैया और लाल की दूरी सब समझे मजबूरी।। #kavita #chhathpuja #aparnabajpai

बुरा आदमी (#हिन्दी कविता)

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बुरे बनते आदमी की राह में उसकी अच्छाइयां होती हैं मील का पत्थर, कदम दर कदम नापता रिश्तों का खोखलापन आदमी हो जाता है पूरा का पूरा खाली, ढोल और नगाड़े से बजते हैं वे शब्द जो कहे गए थे कभी उसकी भलमनसाहत में. आदमी बुरा नहीं होता; आदमी होता है थोड़ा टेढ़ा, जो अपेक्षाओं की सीधी लकीरों में समा नहीं पाता।। #AparnaBajpai #आदमी

खतरनाक

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 हजारों वारदातों के बीच घूमना अकेले कुछ कम जोख़िम भरा नहीं, घर में चार मर्दों के बीच रहना भी जोख़िम ही है, तालाबों पर नहाना जंगल में काम करना  लकड़ी का बोझ ले बाज़ार में बैठना क्या कम खतरनाक है, और आप ही बताइए जनाब! औरत के तन में एक स्वतंत्र मन होना खतरनाक नहीं है क्या??, #स्त्री #aparnabajpai

अलगाव ( प्रेम कविता)

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प्रेम उन हवाओं से छनता रहा, जो तुम्हारे शहर से लौटी थीं, तुम्हारे स्पर्श से महका रजनीगंधा आज मेरे इत्र में अा मिला, सुबह पैरों के आसपास नाचती हुई तितली ने, तुम्हारी नज़रों का पैग़ाम मुझको सौंपा, मै बेसुध हूं ! फोन पर तुम्हारी खिलखिलाहट की घंटियां मेरे पांवों में थिरकन भर रही हैं, आज उंगलियों ने मेरे हस्ताक्षर में तुम्हारा नाम लिख दिया.. नदी के पाट पर बैठा रहा हूं; तुममें,खुद को खोजता परछाइयों ने जुदा होने से इन्कार कर दिया है.. #प्रेमकविता #aparnabajpai