संदेश

जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

असलियत का सामना( किस्सा बालों का)

चित्र
फैशन करना किसे अच्छा नहीं लगता! खूबसूरत बाल, चमकदार आंखें,  उजली रंगत, खशबू उड़ाती अदा और न जाने क्या क्या... तो दोस्तों मारे तो हम सब हैं फैशन के... कभी कभी हम खुद को थोड़ा अलग दिखाना चाहते हैं... और इसके लिए भारी मशक्कत भी करते है. लेकिन क्या हो अगर भरे बाज़ार हमारा असली रूप सामने आ जाये। तो किस्सा कुछ यूं है कि, अरशद मियाँ क्या गबरू जवान हट्टे-कट्टे आदमी थे एक बार में चार आदमियों को धूल चटा देने वाले... मोहल्ले में उनके जैसा दिखने वाला दूसरा आदमी न था। घर में बूढ़े बाप के अलावा और कोई न था। बेचारे जल्द से जल्द शादी करना चाहते थे। खाला और फूफियों ने कई रिश्ते भी दिखाए थे पर बात बन न पाई थी। समस्या थी उनके बाल! जो दिनों दिन संख्या में कम होते जा रहे थे। अब टकला होना किसे अच्छा लगता है... बेचारे हर महीने हज़ारों रुपये अपने बालों को बचाने में खर्च करते। गूगल बाबा की शरण में जा-जा कर नए नए नुस्ख़े तलाशते और उन्हें अपने  बालों पर आजमाते, पर वही ढाक के तीन पात!! बालों का गिरना बदस्तूर जारी था। एक दिन ख़ाला ने कहा कि एक खूबसूरत लड़की मिल गई है... जल्द से जल्द आकर देख लो नहीं तो वह भी हाँथ से निकल ज

धागे का दु:ख

मजदूर के तन पर चढ़ा उतरन खुशी में भूल जाता है अम्मा की उंगलियों का स्वाद, करघा खड़ा है गांव के बाहर कपास सिर धुन रही है मिल की तिजोरी में, का से कहूं दुखवा मैं धागे का, मिलान में रेड कार्पेट पर चलती हसीनाएं और उनका शरीर न जाने आजकल गंध क्यों मारते हैं, बाबू के माथे का पसीना जब - जब गिरा है करघे की डोरों पर, यह देश मेहनत की खुशबू में डूब गया है। ©️अपर्णा बाजपेई

यह गणतंत्र दिवस हमारे कर्तव्यों के नाम

चित्र
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आइए आज हम प्रण लेते हैं कि यह दिन हम अपने जीवन में मात्र एक छुट्टी के दिन की तरह न मनाकर याद करेंगे आज़ादी के उन लड़ाकों की कहानी जिन्होंने अपने आप को हंसते हंसते देश पर न्योछावर कर दिया था। आज सबसे जरूरी है कि हम अपने बच्चों को इस आज़ादी की कीमत समझाएं, उन्हें बताएं इस प्रजातंत्र ने उन्हें क्या शक्ति दी है, हमारे संविधान ने उन्हें क्या अधिकार दिए हैं और उनके क्या कर्तव्य हैं। आज जब पर्यावरण बिगड़ रहा है, जंगल सिकुड़ रहे है, इंसान मात्र एक संख्या भर है तब जरूरत है कि हम बच्चों को सही राह दिखाएं, उनके लिए प्रेरणा बनें। इस गणतंत्र दिवस को प्रकृति और मानवता के नाम समर्पित करें।

झरबेरिया के बेर

चित्र
 आज झरबेरिया का किस्सा सुनो दोस्तों! तो हुआ यूं कि एक दिन राम खेलावन चच्चा बैठे रहे अपने दुआर पर। तब तक पियरिया अपनी झोरी में झड़बेरी के बेर लेकर खाते हुए निकली और राम खेलावन के दरवाज़े के बाहर गुठली थूक दी। राम खेलावन सब देख रहे थे। वहीं से चिल्लाए... ऐ पियारी एने आओ... उठाओ गुठली, दरवाज़े दरवाजे थूकती चलती है। पीयारी सहम गई... ई राम खेलावन चच्चा कहां से देख लिए.. अब हो गया सत्यानाश.. पियारी लौट के अाई का ,हुआ चच्चा... आवाज़ दिए थे का... चच्चा का पारा सातवें आसमान पर.. देखो इसको.. दरवाजे पर गुठली थूक के कहती है आवाज़ दिए थे का.. ई गुठली उठाओ और भागो यहां से.. पियारी लजा गई। चच्चा आज नहीं छोड़ेंगे। दुवार पर गिरे एक- एक पत्ता को अपनी जेब में रखने वाले राम खेलावन आज दरवाजे पर किसी का थूक कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। बात सही है चच्चा की। तब तक मोहल्ला के और लोग इकट्ठा हो गए।  अपनी ही थूकी हुई गुठली उठाने में पियारी को बहुत शर्म अा रही थी वो भी सबके सामने। झट से चच्चा के सामने झोली फैलाते हुए बोली, चच्चा तनी खाके देखो ई बेर। हिया खटिया पर रख रहे हैं, अभी गुठली उठा के फेंक देंगे। तनी मिठास दे

नया कुछ रचना है

चित्र
पानी में रहना है मगर से लड़ना है किस्सों की दुनिया में नया कुछ रचना है। होशियार से होशियारी की लोहार से लोहे की पेड़ों से लकड़ी की शिकायत नहीं करते हैं। आंखों से पानी को भरे घर से नानी को बैलों से सानी को अलग नहीं करते हैं। बातों में मिठास को दावत में लिबास को बीमारी में उपवास को  दरकिनार नहीं करते हैं।। ©️ अपर्णा बाजपेई

वक्त से उम्मीद कुछ ज्यादा रही थी

चित्र
 वक्त से उम्मीद कुछ ज्यादा रही थी, आज एक सरिता कहीं उल्टा बही थी रुक गए थे हांथ में पतवार लेकर मौज से कस्ती ने कुछ बातें कही थीं... था अंधेरा हांथ में दीपक रखा था, शाम ने जुगनू से एक मुक्त्तक कहा था, धूप ने सींची थी वे कंपित गुफ़ाएं, तम ने जिनमें मौन का संबल रखा था... दोस्ती ने हांथ में खंजर रखा था, पीठ पीछे शब्द ने गड्ढा बुना था हांथ अपना कट चुका था बरसों पहले देर से कितना कोई नश्तर चुभा था। राह रोके खड़ी थीं कुछ वर्जनाएं देहरी से दीप कुछ पीछे हटा था लौटना था जिस तरफ हरदम अकेले हांथ वहीं आकर सहसा कटा था लौट आना फिर कभी कोई न बोला ये जगह बस आपकी होकर रहेगी स्वप्न सारे जीते होंगे जो कहानी आज जाग्रत देह जिएगी दीवाली।। ©️Aparna Bajpai