तुम बस थोड़ा जोर से हंसना इतनी जोर से कि दिमाग में यह ख्याल रत्ती भर भी ना आए कि हंसने से आंखों के नीचे उभर आती हैं झुर्रियां , कि गालों पर उम्र की रेखाएं थोड़ी ज्यादा पैनी नज़र आती हैं , कि हंसने पर तुम्हारे दांत थोड़े पीले दिखते हैं , बस हंसना और महसूसना उस खुशी को जो हंसने में तुम्हें महसूस होती है , अपने चेहरे की बनावट, उम्र का असर और अनुभव की सुर्ख़ियों को कुछ देर के लिए भूल जाना , हंसना कि हंसने से रोशन होती है सारी फिज़ा , मिट जाता है गुबार, आसमान का रंग थोड़ा और नीला हो जाता है और धरती! थोड़ी और हरी।। ©अपर्णा बाजपेई
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
रचना को मंच पर स्थान देने इसे लिए सादर आभार स्वेता जी
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंजी आभार
हटाएंसादर
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद sir
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी सादर
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बधाई
बहुत शुक्रिया sir
हटाएंवाह! क्या बात है। अनुप्रासम सुंदर रचना!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बहुत प्रभावी रचना है यह आपकी । सरल एवं बोधगम्य तथा साथ ही अविस्मरणीय भी । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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