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रंगों का उत्सव

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 फागुन में रंगों की आई बाहर है, गले मिलो होली ये सबका त्योहार है।2 हिन्दू और मुस्लिम सिक्ख ईसाई, मिलजुल के सबने है होली मनाई सबके गालों पर लगा अब गुलाल है गले मिलो होली..... फाग के रंग में रंगी है अवधिया, कान्हा के गोकुल में नाचे हैं सखियां, बरसाने  लाठी से होता दुलार है गले मिलो होली .... काशी में शिव की बारात है आई भांग के रंग में रंगे हैं बाराती, गौरा और शिव की निराली ही बात है गले मिलो होली...... रंगों का उत्सव खुशी का है संगम शालीन रखना, मचाना न ऊधम, हुड़दंगी होली से बचना ही शान है गले मिलो होली....

शहीदों को याद करते हुए

फाँसी का फंदा चूम लिया जब तीनो अमर शहीदों ने वो बीज धरा पर डाल गए कुर्बानी की परिपाटी के, था एक भगत, एक राजगुरू सुखदेव एक था तीनों में, उस कोर्टरूम में बस उसदिन बम धमकाने को फेंका था, उद्देश्य एक था आज़ादी अंग्रेजों को भगाना था, अपने अम्बर की छाती पर आज़ाद हवा लहराना था, सूखी रोटी सादा पानी, अपनी धरती का सुख धानी, आज़ाद देश का मूल्य बहुत कुछ वीरों की हो कुर्बानी, भारत माता की सेवा में  घर बार जिन्होंने छोड़ा था कर न्योछावर सुख जीवन का अपनों को सिसकता छोड़ा था, न कोई लालच था उनको, उत्कृष्ट इरादा था उनका बस देश प्रेम ,आज़ाद फिज़ां सब वीरों का बस एक सपना अंतिम इच्छा थी तीनों की, बस एकदूजे के गले मिले फ़िर चूमें वे इस फंदे को माँ के मस्तक को ज्यों चूमें, था सिसक रहा पूरा भारत और देशप्रेम की अलख जगी कुर्बान हुए उन वीरों से अगणित वीरों की फौज उठी, फ़िर फहर गया अपना झंडा, अंग्रेजों से आज़ाद हुए, उन अमर शहीदों ने हमको आज़ादी की सौगात दिए, इस आज़ादी को जीना है इस धरती पर मर मिटना है, हो जन्मभूमि पर न्योछावर अपनी आहुति अब देना है।। ©️अपर्णा बाजपेयी

शहीदों की याद में

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 इस शहीद दिवस पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को इस छोटी सी कविता के माध्यम से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं

प्रेम में

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 उन्होंने मछलियों से प्रेम किया खींच लाये उन्हें पानी से बाहर, भले ही इस बीच वे ज़िंदा से मृत हो चुकी थीं; पानी जो उनका लिबास था घर था और था जिंदगी की पहली जरूरत, प्रेम में पानी को पत्थर बनते देखा, पानी जो गवाह था मरती हुई मछली की तड़प का, मछलियां मर रही थीं पानी मर रहा था, ज़िंदा था तो बस प्रेम! मनुष्य का प्रेम मृत्यु का सबसे बड़ा सहोदर है। Image credit undplash.com  ©️Aparna Bajpai

एक अज़नबी

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  तुमने मेरी आँखों मे देर तक झाँका, चुपके से देखते, और छिप जाते शर्म की ओट, मां की गोद में दुबके हुए तुम! मेरे चेहरे की लकीरें पढ़ने में व्यस्त थे, और मैं; तुम्हारी आंखों के उस भाव को समझने में, तुमने मेरे बैग को छुआ, मानो जांचना हो मेरा गुस्सा, मेरी ओढ़नी पर अपने होंठों की छाप लगाई, शब्द हमारे बीच अज़नबी रहे, और भाषा अनावश्यक फ़िर मैं उठी, विदा में तुम्हारी ओर देखा, अचानक तुमने थाम ली मेरी उंगली.... तुम्हारी आँखों में भर आया जल,  और मैं नेह के सागर में डूब गई... अब तुम मेरी डायरी के पन्ने पर बैठे हो, जैसे बैठ गया हो समय थोड़ी देर सुस्ताने को। अपर्णा बाजपेयी

जब कभी होना अकेले

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 हम मनाते हैं 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' क्योंकि महिलाओं को खुद से प्यार था। श्रम के मूल्य में बराबरी, सत्ता के चुनाव का अधिकार और समाज में स्वयं को समान स्तर पर लाने की चाह ही थी जिसने हमें लंबे संघर्ष के बाद अपना दिन दिया। यह दिन हम सब के लिए अपना होना चाहिए। सिर्फ महिलाएं ही नहीं पुरुषों के लिए भी। आज बस इतना कहना है कि हमें ख़ुद से प्रेम करना होगा तभी हम स्वयं को बराबरी के स्तर पर देख पाएंगे। जब कभी अकेले होना तो होना आने साथ, दुलारना खुद को थोड़ा सा, जैसे चूम लेते हो अपने बच्चे का मस्तक; एक चुम्बन अपनी हथेलियों पर रखना अपनी आंखों में झांकना और देखना मानो नीली झील तुम्हारे मन में ठहर गई है, एक लंबी सांस लेना और भर लेना हवा को फेफड़ों में, पांवो के तलवों को छूकर कहना धन्यवाद दोस्त! तुम्ही ने थाम रखा है इस कठिन समय में, अपने अंगों को गौर से देखना और महसूसना; कितनाअमीर बना कर भेजा है ख़ुदा ने तुम्हें, दूसरों के ख़याल में डूबी हुई औरतों! थोड़ी देर के लिए खुद के साथ होना, और दुनिया भर के बोझ से लदे पुरुषों! तुम्हें भी हक़ है सराहे जाने का: खुद की तारीफ़ में कुछ लतीफ़े खोजना, अपने सौं

उसी मोड़ पर

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 कभी उस मोड़ तक आना तो ठहरना कुछ देर, परछाइयां कुछ अब भी तेरी राह तक रही होंगीं, जमीं पर डालना बस एक नज़र तुम यूं ही शर्म में डूबी हुई आंखों का ख़याल आएगा, हथेलियां अपनी भीचोगे तो उफ़्फ़ निकलेगी किसी का हाँथ कट कर दूर गिरा हो जैसे,  हवा उस मोड़ पर अब भी सुर्ख़ होगी कुछ लालियां घुल गई थीं उनमे जो बरसों पहले, पुराने दर्द बड़े कीमती होते हैं वहीं जहां गिरने से कभी ज़ख्म लगा होता है.. अपर्णा बाजपेयी